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बेमिसाल उपमाओं-रचनाओं के अद्वितीय महाकवि

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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कालिदास जयंती (४ नवम्बर) विशेष…

साहित्य के क्षेत्र में अभी तक हुए महान कवियों में कालिदास जी अद्धितीय हैं। उनके साहित्यिक ज्ञान का कोई वर्णन नहीं किया जा सकता। कालिदास जी की उपमाएं बेमिसाल हैं, और उनके ऋतु वर्णन तो अद्वितीय है। मानो कि, संगीत कालिदास जी के साहित्य का मुख्य अंग है। उन्होंने अपने साहित्य में रस का इस तरह सृजन किया है, जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। श्रंगार रस को उन्होंने अपनी कृतियों में इस तरह डाला है, कि मानो पाठकों में भाव अपने-आप जागृत हो जाएं। विलक्षण प्रतिभा से निखरे महान कवि कालिदास जी के साहित्य की खास बात ये है कि, साहित्यिक सौन्दर्य के साथ आदर्शवादी परम्परा व नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है।
माना जाता है कि, कालिदास माँ काली के परम उपासक थे। अर्थात कालिदास जी के नाम का अर्थ है ‘काली की सेवा करने वाला’।
कालिदास अपनी कृतियों से हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेते थे। एक बार जिसको उनकी रचनाओं की आदत लग जाती, बस वो उनकी कृतियों में ही लीन हो जाता था। ठीक वैसे ही, जैसे उनको कोई एक बार देख लेता था, तो बस देखता ही रहता था क्योंकि, वे अत्यंत मनमोहक थे, साथ ही राजा विक्रमादित्य के दरबार में ९ रत्नों में से १ थे।
माना जाता है कि, १५० ईसा पूर्व ४५० ईस्वी तक कालिदास रहे होंगे, जबकि एक शोध के मुताबिक कालिदास गुप्त काल में जन्मे होंगे। महाकवि के जन्म काल की तरह उनके जन्म स्थान के बारे में भी कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता। अपने खण्डकाव्य ‘मेघदूत’ में मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर का काफी वर्णन किया है, इसलिए कई इतिहासकार मानते हैं कि, कालिदास जी उज्जैन के निवासी थे।
महान कवि कालिदास जी के बारे में ये भी कहा जाता है कि, वे बचपन में अनपढ़ थे, उन्हें चीजों की समझ नहीं थी, लेकिन बाद में वे साहित्य के विद्वान हो गए और हिन्दी साहित्य के महान कवि का दर्जा मिला। ऐसा कहा जाता है कि, अपने अपमान से दुखी और बदला लेने के लिए छल से कुछ विद्वानों ने कालिदास जी से राजकुमारी विद्योत्मा का शास्त्रार्थ और विवाह करवा दिया। जब राजकुमारी को कालिदास जी की मंद बुद्धि का पता चला तो कालिदास जी को बहुत धिक्कारा और घर से निकाल दिया। इस तरह उन्हें पत्नी के धिक्कारने के बाद परम ज्ञान की प्राप्ति हुई और महान कवि बन गए। आज उनकी गणना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाने लगी है। यही नहीं, संस्कृत साहित्य में अभी तक कालिदास जैसा कोई दूसरा कवि पैदा ही नहीं हुआ। उन्होंने नाट्य, महाकाव्य और गीति काव्य के क्षेत्र में अदभुत रचनाशक्ति का प्रदर्शन कर अलग ही पहचान बनाई है। उनकी रचनाओं की लंबी सूची है, लेकिन कालिदास जी को ७ रचनाओं की वजह से सबसे ज्यादा ख्याति मिली है। इसमें ४ काव्य-ग्रंथ-महाकाव्य-
रघुवंश, कुमारसंभव, खंडकाव्य-मेघदूत, ऋतु संहार, ३ नाटक-अभिज्ञान शाकुंतलम्, मालविकाग्निमित्र और विक्रमोर्वशीय प्रसिद्ध है। इन रचनाओं की सुन्दर सरस भाषा, प्रेम-विरह की अभिव्यक्ति व प्रकृति चित्रण से पाठक मुग्ध और भाव-विभोर हो उठते हैं

कालिदास जी ने ‘उत्तर कालामृत’ पुस्तक की भी रचना की, जो मुख्य रुप से ज्योतिष पर आधारित है। इससे पता चलता है कि, महाकवि ज्योतिषी विद्या में भी प्रखर थे।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।