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भाग्य विधाता

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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नरेश और नीलू दोनों ही कॉन्वेंट विद्यालय के छात्र थे। दोनों अलग-अलग कक्षा में पढ़ते, लेकिन एक ही कॉलोनी में घर होने के कारण आपस में भरपूर बातें करने का अवसर मिलता, जिससे दोनों के बीच एक रिश्ता-सा पनपने लगा।
वह एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते, यहाँ तक कि वो एक-दूसरे से हर छोटी बात भी कहते और एक दिन दोनों विवाह का वादा कर बैठे। घरवालों को ज्यों ही इस रिश्ते की खबर मिली, नरेश की आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण उन्होंने नीलू के साथ किसी रिश्ते से साफ इनकार कर दिया, और फौरन एक रईस खानदान के लड़के से उसका विवाह करा दिया।
नरेश इस विवाह से बिल्कुल टूट-सा गया। यहाँ तक कि वह हर वक्त उसके ख्यालों में डूबा रहता। रातों की नींद भी गायब हो गई। अब वह गलत संगत में पड़कर शराब आदि का भी नशा करने लगा।
एक दिन नरेश विद्यालय के प्रांगण में गुमसुम बैठा था। इतने में सामने से गुजर रहे समर सर पूछ बैठे-“क्या बात है बेटा, इतनी उदासी क्यों ?”
“नहीं सर, कुछ नहीं।”
“बेटा हम शिक्षक हैं। हमें विद्यार्थियों का चेहरा पढ़ना बखूबी आता है। तुम ना भी बताओ, तो हम समझ सकते हैं। तुम नीलू के विवाह से परेशान हो न! नरेश तुम मेरे विद्यार्थी नहीं ,मेरे बेटे समान हो, तुम्हारी उम्र बहुत ही नाजुक है। एक गलत फैसला तुम्हारा पूरा भविष्य चौपट कर सकता है। नीलू जब दूसरे से विवाह कर खुश है, तो तुम शोक मना कर अपनी जिंदगी क्यों दांव पर लगा रहे हो! महीने भर बाद तुम्हारी बी-टेक की परीक्षा है। मन लगाकर पढ़ाई करो और खुद को इस लायक बनाओ कि उसे अपने फैसले पर पछतावा हो! और नरेश, प्यार जैसी प्यारी वस्तु को कभी कमजोरी नहीं, उसे अपनी ताकत बनाओ।”
अध्यापक की बातों का नरेश पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उनके एक बार कहने मात्र से खुद को संभाल कर पढ़ाई में मन लगाया और पूरे कॉलेज में अव्वल अंकों से उत्तीर्ण हुआ, जिसके लिए विद्यालय की ओर से प्रांगण में एक सभा का आयोजन किया गया और नरेश को पुरस्कृत भी किया गया। यह देख उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। सामने समर सर को देख वह खुद को रोक न सका और उनके पास जाकर कहा–“सर आप मेरी जिंदगी में सही वक्त पर आकर मेरे भाग्य विधाता बने, वरना मैं तो जिंदगी से बिल्कुल टूट चुका था।”

नरेश ने सर के चरण स्पर्श किए तो उन्होंने पीठ थपथपाते हुए आशीर्वाद के दो ही शब्द बोले-“खुश रहो बेटा।”