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भाजपा की ‘वाॅशिंग मशीन’ और चारित्रिक चमकार का निरमा पाउडर…!

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी को ‘राजनीतिक गंगा‘ को पहले ही मान लिया गया था,लेकिन पार्टी की ‘सफाई क्षमता’ की नई व्याख्या हाल में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री राव साहेब दानवे पाटिल ने की है। महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर महाजनादेश यात्रा में श्री दानवे ने कहा कि किसी को बीजेपी में लेने से पहले हम उसे वाशिंग मशीन में धोते हैं। बीजेपी के पास गुजरात का निरमा पाउडर है। बीजेपी ज्वाइन करने वाले हर व्यक्ति की पहले इस पाउडर से धुलाई की जाती है (उसके बाद उसे पार्टी में ले लिया जाता है)। हालांकि,दानवे ऐसे विवादित बयान देते रहते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान दाल खरीद को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए सवाल पर भड़के दानवे ने कहा था कि ‘ महाराष्ट्र सरकार तो दाल खरीद रही है। तुम (कार्यकर्ता) अखबार ज्यादा पढ़ते हो। अरहर,कपास,दलहन का रोना तुम लोग अब बंद करो।’ इस दौरान उन्होंने अपशब्दों का प्रयोग भी किया था,जो किसी धुलाई का हिस्सा शायद नहीं था।
बहरहाल,दानवे का ताजा बयान उस परिप्रेक्ष्य में आया है,जब भाजपा ने पिछले माह ही अपनी सदस्य संख्या ११ करोड़ से बढ़ाकर २० करोड़ करने का अभियान छेड़ा हुआ है। दूसरे शब्दों में पार्टी की धुलाई मशीन अपनी फुल स्पीड पर चल रही है। लिहाजा तमाम विपक्षी पार्टियों के नेता भाजपा में आने के लिए कतार लगाए हुए हैं। पार्टी में इस तरह ‘आव्रजकों’ की भीड़ से बेचैन पुराने भाजपा नेताओं का मानना है कि भाजपा में आने के लिए कुछ तो ‘फिल्टर’ लगाया जाना चाहिए। उसकी चाल,चरित्र और चेहरा तो देखा जाना चाहिए। कुछ तो आईडी वेरिफिकेशन हो। सत्ता के लालच में हर वो नेता भाजपा में सीट बुक कराने में लगा है,जो कल तक बीजेपी को पानी पी-पी कर कोस रहा था।
अब दानवे की बात को जरा गहराई से समझें। दानवे ने भाजपा को वाॅशिंग मशीन ही क्यों कहा और इस मशीन में गुजरात के निरमा वाॅशिंग पाउडर से होने वाली धुलाई को ही गंगा स्नान के समकक्ष पवित्र और असंदिग्ध क्यों माना ? भाजपा के बारे में खुद भाजपाइयों का मानना है कि भाजपा में भ्रष्टाचार तो क्या,ऐसे किसी शब्द का सार्वजनिक उच्चारण भी निषिद्ध है। यानी भाजपा जहां भी सत्ता में है,वहां व्यावहारिक भ्रष्टाचार तो संभव है,लेकिन सैद्धांतिक भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं है। ऐसा करने की नीयत से कोई भाजपा में आना चाहता है तो उसे ‘सैद्धांतिक भ्रष्टाचार धुलाई मशीन’ से गुजरना पड़ेगा। यह मशीन आगंतुक नेता की धुलाई कर उसकी पब्लिक इमेज का ऐसा मेक ओवर करेगी कि भ्रष्टाचार के दाग भी भगवा प्राइमर पर उजले नजर आने लगेंगे। वैसे भी भ्रष्ट कहलाना भ्रष्ट होने से ज्यादा बुरा है,लेकिन भाजपा में आते ही आगत नेता भ्रष्टाचार का चोला छोड़ पवित्रता का अपारदर्शी बाना धारण कर लेता है।
दानवे ने दूसरी अहम बात गुजरात के निरमा पाउडर की कही। निरमा पाउडर गुजरात के करसन भाई पटेल के दिमाग की उपज और कारोबारी सफलता की कहानी है। उन्होंने जबर्दस्त प्रचार और दूसरों की तुलना में बेहद सस्ता वाॅशिंग पाउडर बाजार में बेच कर नया रिकाॅर्ड बनाया। यह बात अलग है कि मार्केट में मांग बनवाने के लिए करसन भाई ने दोहरा दावं खेला था। एक तरफ उन्होंने वाॅशिंग पाउडर का जमकर प्रचार किया और दूसरी तरफ मार्केट में मौजूद तमाम निरमा पैकेट गायब करवा दिए। इससे निरमा का कृत्रिम अभाव बना। घबराए लोग तेजी से निरमा पाउडर खरीदने लगे। करसन भाई अरबपति बन गए। यह है गुजरात के वाॅशिंग पाउडर की करामात,जो रंगीन कपड़े को भी ‘खिला’ देती है। निरमा वाॅशिंग पाउडर बेदाग धुलाई करे न करे, ‘दूध सी सफेदी’ लाने का दावा जरूर करता है। हालांकि,यह ‘दूध-सी सफेदी’ सिंथेटिक दूध की है या फिर भैंस के असली दूध की,इसको लेकर मतभेद हैं। वैसे भी राजनेताओं के चरित्र की सफेदी दल और सत्ता सापेक्ष होती है। मसलन विपक्ष में रहते हुए कोई अत्यंत भ्रष्ट और दुराचारी है तो वह सत्ता पक्ष(खास कर भाजपा में) आते ही सर्वाधिक शिष्ट और ‍सदाचारी अपने-आप ही बन जाता है,और इसे सिद्ध करने के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं पड़ती।
इसीलिए भाजपा भ्रष्ट नेताओं को लेने में कोताही नहीं करती। वह ऐसे नेता की भ्रष्टता की गहराई नापने में वक्त गंवाने के बजाए, उसकी राजनीतिक उपयोगिता के हीमोग्लोबिन काउंट पर ज्यादा ध्यान देती है, जो कहीं भी पार्टी को सत्ता के द्वार तक ले जा सकती है तथा सत्ता में अनंत काल तक टिकाए रख सकती है। यही कारण है कि खुद भाजपा जिसे पहले भ्रष्ट मानती है,बाद में उसे ही अ-भ्रष्ट मानने लगती है। जैसे कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा। पार्टी ने उन्हें भ्रष्ट होने के आरोप में हटाया और शायद इसी ‘योग्यता’ के चलते फिर राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। चूंकि,येदियुरप्पा भाजपा के असली (ओरिजिनल) नेता हैं,इसलिए उनकी ‘धुलाई’ के लिए किसी गुजराती निरमा पाउडर की जरूरत नहीं पड़ी। यह काम कर्नाटक के लोकल चंदन पाउडर से ही हो गया।
बेदाग धुलाई और पवित्रता वर्तमान भाजपा के शब्द कोश के ‍अनिवार्य शब्द हैं। उदाहरण के लिए जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी राफेल फाइटर प्लेन को लेकर मोदी पर लगातार हमले कर रहे थे,तब भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने डंके की चोट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘गंगा के समान पवित्र’ बताया था। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भ्रष्ट नेता भाजपा में आते ही किसी दैवी चमत्कार से न सिर्फ (चारित्रिक) सफेदी की चमकार बिखेरने लगते हैं,बल्कि वे ‘महान रणनीतिकार’ भी हो जाते हैं। वो भी बगैर‘ धुलाई’ के। फिर चाहे वो बंगाल में मुकुल राय हों या फिर असम से हिमंत बिस्वास शर्मा हों।
भाजपा की इस ‘धुलाई मशीन’ की एक खासियत और है। इसमें केवल दो बटन होते हैं। एक ‘भाजपा के अंदर’ और दूसरा ‘भाजपा के बाहर।‘ ‘इन’ का बटन दबते ही मशीन में ‘चारित्रिक पवि‍त्रता’ का झाग उमड़ने लगता है और ‘आउट’ का बटन दबाने पर भ्रष्ट चरित्र का काला मैल पूरी सफेदी को ढंक लेता है। शायद इसीलिए राजद नेता शिवानंद तिवारी ने कहा था कि जो बीजेपी के साथ है,वह ‘हरिश्चंद्र’ है और जो विरोध में है,वह ‘भ्रष्टाचारी’ है। दरअसल मंत्री दानवे ने भाजपा की जिस धुलाई मशीन का ‍जिक्र किया है,उसका साॅफ्टवेयर उसी समझ,सोच और सियासी रणनीति से बना है,जिसे शिवानंद प्रतीकों से समझा रहे थे। यहां सवाल सिर्फ इतना है कि जब भाजपा के ११ करोड़ सदस्यों में यह स्थिति है,तो जब २० करोड़ होंगे तो कितनी धुलाई और निरमा पाउडर की दरकार होगी ?

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