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भाषा के प्रति सजगता सपना चंद्रा की लघुकथा सृजन की विशेषता

पटना (बिहार)।

समसामयिक जीवन और जिजीविषा में अनेक जटिलताएं और विसंगतियां हैं। इन्हीं जटिलताओं और विसंगतियों के कारण यथार्थ के अनेक रूप देखने को हमें मिलते हैं। लघुकथा का अंत किसी निष्कर्ष पर नहीं होना चाहिए। ऐसा वाक्य लघुकथा के अंत में होना चाहिए, जहां से पाठक भी अपनी तरफ से सोचना आरंभ कर सके‌। मुझे खुशी है कि इन लघुकथाकारों के बीच ऐसी कवयित्री भी है, जो सार्थक लघुकथाओं का सृजन लगातार कर रही है। उस चर्चित लघुकथा लेखिका का नाम है सपना चंद्रा। भाषा के प्रति सजगता सपना चंद्रा की लघुकथा की विशेषता है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी माध्यम से लघुकथा सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उदगार व्यक्त किए। उन्होंने सपना चंद्रा की चुनी हुई लघुकथाओं पर कहा कि, इसी प्रकार सांझ के पार, आओ जी लें जरा, हाल-चाल आदि कई ऐसी लघुकथाएं हैं, जो लेखन शैली को पाठकों के हृदय के अनुकूल बनाती है। लेखिका की भाषा, मूर्त से अमूर्त एवं सूक्षमता की ओर ले जाती है l
मुख्य अतिथि लेखिका सपना चंद्रा ने अपनी १२ लघुकथाओं का पाठ किया और कहा कि, सिद्धेश्वर जी के नेतृत्व में परिषद् ने पिछले ४ दशकों से नवोदित, युवा व प्रतिष्ठित लघुकथाकारों को जोड़ने व विधा की सर्जनात्मकता को अभिनव आयाम देने में सकारात्मक भूमिका का निर्वाह किया है, जो अभिनंदनीय है।
अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए सम्पादक अविनाश बंधु ने कहा कि, आजकल अधिक लंबी लघुकथा लिखी जा रही है जो लघु कहानी तो हो सकती है, लघुकथा नहीं। कोई भी रचना तभी सार्थक है, जब उसके माध्यम से सार्थक संदेश दिया जाए।
विशिष्ट अतिथि रशीद गौरी ने कहा कि, सपना चंद्रा की लघुकथाएं एक से बढ़कर एक हैं। सभी मर्मस्पर्शी लघुकथाएं मन को छूती हैं, प्रभावित करतीं हैं‌।
रजनी श्रीवास्तव ‘अनंता’, सविता राज, डॉ. अलका वर्मा, ऋचा वर्मा, पूनम श्रेयसी, राज प्रिया रानी, डॉ. शरद नारायण खरे और डॉ. पूजा हेमकुमार अलापुरिया आदि ने देशभर से अपनी लघुकथाओं का पाठ किया, जिन पर समीक्षात्मक टिप्पणी अविनाश बंधु ने दी।