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भेज रही हूँ राखी भैया

बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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स्नेह के धागे…

भेज रही हूँ राखी भैया,
शायद, घर न आ पाऊँगी
एक दिन की छुट्टी में,
कैसे त्योहार मनाऊँगी ?

याद करूंगी रोली-थाली,
माथे तिलक लगाती हूँ
माँ-बाबू जी से मिलकर,
दु:ख-दर्द भूल जाती हूँ
छुटकी से कबसे मिली नहीं,
आके गले लगाऊँगी।
भेज रही हूँ राखी भैया,
शायद घर न आ पाऊँगी…

माँ की बनाई खीर-रसगुल्ला,
याद बहुत आते हैं
बचपन के दिन वो दिल में,
बड़ी कसक जगाते हैं
पंख लगाकर उड़ गए दिन वो,
वापस उनको कब पाऊँगी ?
भेज रही हूँ राखी भैया,
शायद घर न आ पाऊँगी…॥