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मंजुल ऋतु वधु-सी आयी…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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मंद पवन हिंडोले में,
सिंदूरी सी गोले में
रख उमंग भर मंजूषा,
मन भर आंनद तोले में।
चलती हौले अलसायी,
मंजुल ऋतु वधु-सी आयी…॥

छू हर हृदय हर्षाती,
छुई-मुई-सी शर्माती
आम्र मंजरी श्रंगारित,
टेशू अंजुल बरसाती।
आँचल में भर पुरवाई,
मंजुल ऋतु वधु-सी आयी…॥

खेत उतर कर सरसों के,
शिथिल उन्नीदी बरसों से
छोड़ गयी शीत सखी अब,
पतझड़ आएगा परसों से।
सुरभि सुमन फल गदरायी,
मंजुल ऋतु वधु-सी आयी…॥

भीनी-भीनी निशिगन्धा,
ऋतु मधु सखी लगी कंधा
मधुकर कुसुमाकर प्यारी,
खिले शुभ्र धवल सँग चंदा।
देख दिनेश कुम्हलाई,
मंजुल ऋतु वधु-सी आयी…॥

श्रंगार करे बासंती,
दमक रही है दमयंती
पिक पुकारता पिऊ-पिऊ,
झूम रही है बैजंती।
है ऋतुपति साथ सगाई,
मंजुल ऋतु वधु-सी आयी…॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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