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मन तरंग मनोदशा

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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एक पत्थर फेंक,
स्थिर जलाशय को
लहरों संग उछाल भरा,
तेजस गति से वृत्ताकार
हो बढ़ा
आहिस्ता-आहिस्ता,
जा समाया किनारों में
बस क्या समझूं ?
यही तो है,
‘मन-तरंग मनोदशा’ की।

तूफान आता है,
चारों दिशाओं से
तीव्र गति से विशालकाय,
पेड़-पौधों को उखाड़ता,
तहस-नहस करता और
उधम मचाता जन जीवन की,
सुखद शहंशाही जिंदगियों में
तरंगित सनसनाहट से।

फिर उसी सन्नाहट में
तब्दील होती,
हर शांति के वातावरण में जाकर
काली घटाएं आती,
गगन की घनघोर वर्षा के
छींटे बूंदा-बूंदी संग,
देश की कृषि कृषक मस्त हुए अपनी अगुआई,
कृषि प्रधान राष्ट्र की खातिर।

मौसम के अनुकूल,
पर्यावरण का रूख बदला
ली अंगड़ाई,
प्रकृति की सारी अनुपम तिरोहित मनोरम दशाएं उमड़ती हुई।

आखिर कहां तक का सफर
होता,
जीवन के इस हसीन व्यापक अंतहीन परिवेश में
ऊंचा मन,
इच्छाओं के क्षणभंगुर
जीवनता में अग्रसर होकर।

रह जाता वही है,
जो सत्कर्म भावों में धर्म
सुजश्य सुप्रभावी कर्तव्यों
का निर्वहन कर,
जीवन जीता है आहिस्ता-आहिस्ता
एक जलाशय सा।
धीर-स्थिर स्थिति-परिस्थिति
बावंडरों से दूर होकर॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।