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महर्षि जमदग्नि

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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ऋचिक पुत्र जमदग्नि थे, भृगुवंशी सन्तान।
श्रेष्ठ सदा सप्तर्षि में, चतुर्वेद विज्ञान॥

पंच पुत्र में श्रेष्ठतम, सिद्धियोग निष्णात।
ऋषि पत्नी थी रोहिणी, जीवन सुख सौगात॥

आज्ञा ले जल भरण को, गई रेणुका भोर।
देर गमनागमन हुआ, संशय ऋषि मन घोर॥

हेतु जान तप ध्यान बल, पत्नी का अपराध।
आज्ञा पत्नी हनन दी, परशुराम निर्बाध॥

माँ की हत्या पूत ने, मान पिता निर्देश।
परशुराम जीवन पुन:, दिया पितृ आदेश॥

कामधेनु जमदग्नि की, जीवन वृत्ति सहाय।
कार्तवीर्य हैहय तनय, लगी रुचिका गाय॥

पाने की इच्छा प्रबल, देख पिता सन्तान।
कामधेनु का हरण कर, ऋषिवर का अपमान॥

परशुराम अवगत हरण, काटा उनका हाथ।
हत्या की जमदग्नि की, नृपसन्तति मिल साथ॥

परशुराम क्रोधी प्रवर, श्रीश ? विष्णु अवतार।
ठानी क्षत्रिय बिन धरा, हैहय सुत संहार॥

अहंकार क्षत्रिय दमन, परशुराम संकल्प।
धूर विरोधी हिंस्र पथ, न था कोई विकल्प॥

परशुराम अक्षय अमर, शस्त्र ज्ञान भण्डार।
महाकाल विकराल रण, महिमा अपरम्पार॥

ऋषि श्रेष्ठ जमदग्नि कथा, आया विष्णु पुराण।
वाचन गायन श्रवण मन, हो मानव कल्याण॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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