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शपथ में इमरान को बुलाएं या नहीं ?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी विजय पर बधाई देते हुए दोनों देशों के बीच बातचीत शुरु करने की पेशकश की है। भारत की तरफ से कहा गया कि बातचीत और आतंक साथ-साथ नहीं चल सकते। इसका मतलब क्या हुआ ? शायद यही कि ३० मई को होनेवाले शपथ-समारोह में इमरान को नहीं बुलाया जाएगा ? यदि इमरान को नहीं बुलाएं और सभी पड़ौसी देशों के नेताओं को बुलाएं तो क्या यह अटपटा नहीं लगेगा ? जब नवाज शरीफ को २०१४ में बुलाया गया था,तब भी आतंकवाद चल रहा था या नहीं ? यह ठीक है कि इमरान खान पाकिस्तानी फौज के ज्यादा करीब हैं लेकिन इमरान जबसे प्रधानमंत्री बने हैं,वे भारत के साथ ताल्लुकात सुधारने की बात बार-बार करते रहे हैं। करतारपुर का मामला उन्होंने ही सुलझाया है। हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को किरगिजिस्तान जाने के लिए पाकिस्तान की वायु-सीमा में से उड़ने की सुविधा उन्हीं की सरकार ने दी है। चुनाव के पहले इमरान खान ने खुले-आम यह बयान दिया था मोदी अगर जीत गए तो भारत-पाक रिश्ते जरुर सुधरेंगे। किरगिजिस्तान की राजधानी बिश्केक में हुए सम्मेलन में भारत और पाक विदेश मंत्री एक-दूसरे से काफी अच्छे ढंग से पेश आए। इन घटनाओं से ऐसा लगता है कि दोनों देशों में बात शुरु होना चाहिए। इमरान-सरकार ने प्रमुख आतंकियों पर काफी बंदिशें भी लगाई हैं। उन्होंने पश्चिमी राष्ट्रों को आश्वस्त किया है कि वे पाकिस्तान से आतंकवाद को खत्म करके ही रहेंगे। जाहिर है कि उनकी अपनी सीमाएं हैं। उनकी घोषणाओं पर विश्वास करके यदि उनको शपथ-समारोह में मोदी ने बुला लिया तो विपक्ष द्वारा पुलवामा के हत्याकांड को जबर्दस्त ढंग से उछाला जाएगा,यह दुविधा तो है। यह भी हो सकता है कि इस बार शपथ-समारोह में सिर्फ पांच महाशक्तियों के नेताओं को ही बुलाया जाएl इस सब उहा-पोह के बीच मोदी थोड़ी हिम्मत दिखा सकते हैं और इमरान को बुलाकर उनसे आतंकियों के विरुद्ध स्पष्ट और कठोर घोषणाएं करवा सकते हैं। इस बार के शपथ समारोह को पहले से भी अधिक भव्य और प्रचारात्मक होना चाहिए,लेकिन पाकिस्तान की फांस निकाले बिना वह कैसे होगा ?

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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