कुल पृष्ठ दर्शन : 181

You are currently viewing महात्मा गांधी के वैचारिक हनन पर एक शिक्षक का मुख्यमंत्री को खुला पत्र।

महात्मा गांधी के वैचारिक हनन पर एक शिक्षक का मुख्यमंत्री को खुला पत्र।

श्री अशोक गहलोत जी,
माननीय मुख्यमंत्री, राजस्थान सरकार,
जयपुर,राजस्थान।

विषय:महात्मा गांधी जी के विचार के एकदम प्रतिकूल उनके ही नाम पर शिक्षा नीति।

महोदय,
‘गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान’ की पत्रिका ‘गाँधी मार्ग’ में आपकी सरकार का एक विज्ञापन देखा। इस विज्ञापन के अनुसार आपकी सरकार अपने राज्य में बड़े पैमाने पर ‘महात्मा गाँधी इंग्लिश मीडियम स्कूल’ खोल रही है।
महोदय,
महात्मा गाँधी अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के सख्त विरोधी थे। उन्होंने ‘यंग इंडिया’ में लिखा है, “अगर मेरे हाथों में तानाशाही सत्ता हो तो मैं आज से ही हमारे लड़के और लड़कियों की विदेशी माध्यम के जरिए शिक्षा बंद कर दूँ और सारे शिक्षकों और प्रोफेसरों से यह माध्यम तुरन्त बदलवा दूँ या उन्हें बरखास्त कर दूँ। मैं पाठ्यपुस्तकों की तैयारी का इंतजार नहीं करूँगा। वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे-पीछे चली आएंगी।”
गाँधी जी का विचार था कि माँ के दूध के साथ जो संस्कार और मीठे शब्द मिलते हैं,उनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिए,वह विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने में टूट जाता है। हम ऐसी शिक्षा के वशीभूत होकर मातृद्रोह करते हैं। गाँधी जी चाहते थे कि बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सब कुछ मातृभाषा के माध्यम से हो। दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान ही उन्होंने समझ लिया था कि अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा हमारे भीतर औपनिवेशिक मानसिकता बढ़ाने की मुख्य जड़ है। ‘हिन्द स्वराज’ में ही उन्होंने लिखा कि, “करोड़ों लोगों को अंग्रेजी शिक्षण देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है। मैकाले ने जिस शिक्षण की नींव डाली,वह सचमुच गुलामी की नींव थी। उसने इसी इरादे से वह योजना बनाई,यह मैं नहीं कहना चाहता,किन्तु उसके कार्य का परिणाम यही हुआ है। हम स्वराज्य की बात भी पराई भाषा में करते हैं,यह कैसी बड़ी दरिद्रता है ?…यह भी जानने लायक है कि जिस पद्धति को अंग्रेजों ने उतार फेंका है,वही हमारा श्रृंगार बनी हुई है। जिसे उन्होंने भुला दिया है,उसे हम मूर्खतावश चिपकाए रहते हैं। वे अपनी मातृभाषा की उन्नति करने का प्रयत्न कर रहे हैं। वेल्स,इंग्लैण्ड का एक छोटा-सा परगना है। उसकी भाषा धूल के समान नगण्य है। अब उसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है। अंग्रेजी शिक्षण स्वीकार करके हमने जनता को गुलाम बनाया है। अंग्रेजी शिक्षण से दंभ-द्वेष,अत्याचार आदि बढ़े हैं। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोगों ने जनता को ठगने और परेशान करने में कोई कसर नहीं रखी। भारत को गुलाम बनाने वाले तो हम अंग्रेजी जानने वाले लोग ही हैं। जनता की हाय अंग्रेजों को नहीं,हमको लगेगी।” अपने अनुभवों से गाँधी जी ने निष्कर्ष निकाला था कि, “अंग्रेजी शिक्षा के कारण शिक्षितों और अशिक्षितों के बीच कोई सहानुभूति,कोई संवाद नहीं है। शिक्षित समुदाय,अशिक्षित समुदाय के दिल की धड़कन को महसूस करने में असमर्थ है।”
महोदय,आप अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोलें या जर्मन के,किन्तु गाँधी का नाम उससे हटा लें,वर्ना इसका बहुत दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। आने वाली पीढ़ियाँ यही समझेंगी कि महात्मा गाँधी अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के पक्षधर थे। तभी तो उनके नाम पर अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय काँग्रेस पार्टी की सरकार ने खोला है-वहीं कांग्रेस पार्टी,जो अपने को गाँधी की विरासत को लेकर चलने का सबसे ज्यादा दावा करती है। बेहतर होगा यदि आप अपने विद्यालयों का नाम ‘गवर्नमेंट इंग्लिश मीडियम स्कूल’ कर लें, किन्तु हमारी प्रार्थना है कि गाँधी का नाम बदनाम न करें।

सधन्यवाद
डॉ. अमर शर्मा कोलकाता(प. बंगाल)

-प्रति अवलोकनार्थ तथा आवश्यक कार्यवाही हेतु श्री राहुल गाँधी,

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

Leave a Reply