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महिला अत्याचार-हैंडल और पाने..सोच बदलने की जरुरुत

विनोद वर्मा आज़ाद
देपालपुर (मध्य प्रदेश) 

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पुनः समाचार पत्रों में एक हृदयविदारक घटना पढ़ने को मिली। शल्यक्रिया में मोटर साईकल का हैंडल निकला और कोख को भी निकालना पड़ा….l निर्भया कांड हम अभी भी भूले नहीं हैं। पूर्व में भी महिला अत्याचार,हत्या के क्रूरतम तरीके देखने सुनने और पढ़ने को मिले हैं। ऐसा लगातार हो रहा है कि कानून का ख़ौफ भी इन घटनाओं को रोक नहीं पा रहा है। गैर महिला से तो क्रूर घटनाएं हो ही रही है,किंतु पत्नी के साथ यह वहशियाना कृत्य करना निश्चित ही जघन्यतम कृत्य माना जाना चाहिये।
एक महिला अपने माता-पिता,भाई-बहन,दादा-दादी और भी कई रिश्तेदारों को छोड़कर सैकड़ों सपनों को गढ़ते हुए एक अनजाने स्थल पर अनजान लोगों के साथ जीवन व्यतीत करने आती है,एक प्रेम की चाह के साथ। प्रेम शब्द स्त्री-पुरुष प्राणीमात्र और परमेश्वर तक छाया हुआ है। प्रेम का अर्थ आनंद होता है। यह आनंद ऐसा होता है,जिसे हम चमत्कार के साथ अनुभव करते हैं,आँखें खुली की खुली रह जाती हैं,मनुष्य की गति,मति,अहंकार,सब स्तब्ध हो जाते हैं,केवल आनंद ही चेतना में व्याप्त होता है।
पति-पत्नी में बावली पवित्रता का एहसास होने लगता है। इसे इस शेर के माध्यम से समझा जा सकता है-
“उल्फत का जब मजा है कि दोनों हो बेकरार।
दोनों तरफ हो आग बराबर लगी हुईll”
यह बराबर की आग-यह परमानुराग-उस स्थिति को भी पा लेता है,जिसे हम दिव्य प्रेम कहते हैं। इस सीमा पर आकर प्रेम निष्काम हो जाता है। हम केवल चाहने के लिए ही चाहते हैं,इसके अलावा प्रियतम या प्रियतमा से और कुछ नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में हमारा अनुराग श्रद्धा का रूप लेकर स्थायी हो जाता है। यही तो पति-पत्नी की अनन्त कामना होनी चाहिए।
हम त्रिया-चरित्र की बातें भी सुनते रहे हैं। इतिहास का चक्र कहें,नियति का खेल,अपना सौभाग्य या दुर्भाग्य मानें। एक वक्त पुरुष नारी का नाता प्राकृतिक विधान से तो बराबरी का था,लेकिन ऐतिहासिक कारणों से पुरुष के सामाजिक विधान से वह पुरुष की भोग्या,मोल ली हुई सम्पत्ति,उसके उत्तराधि कारियों की जननी मात्र ही रह गई। इस सनातन संघर्ष में एक ध्यान में रखने योग्य बात यह भी है कि स्त्री को पुरुष से सामाजिक समता पाने का वैधानिक अधिकार भी है। आदर्श के रूप में अर्धनारीश्वर का प्रतीक हमारे सामने पुरातन काल से हैl
माँ के रूप में श्रद्धा पूर्ण शुद्ध,अभिन्न और अनंत है। रक्षाबंधन के कारण बहन के रूप में अलहदा प्रेम दिखता है। बेटी के रूप में प्यार की कोई सीमा नहीं,फिर पत्नी के रूप में पराए घर से आई किसी की बहन,बेटी,बुआ के साथ मन में दुराभाव क्यों ? वह भी एक इंसान है,यहां हम अहंकारी पति,हुकमचन्द और न जाने क्या-क्या बनने की हरकतें शुरू कर देते हैं। ध्यान देने वाली बात है कि,यह लगभग प्रत्येक घर में होती है-पत्नी को घुमाना-फिराना,उसकी मांगों को पूर्ण करना,पत्नी के आसपास रहना जोरू का गुलाम उपाधि से सम्मानित करने का काम परिवार में शुरू हो जाता है,माँ को भी पूर्ण मान-सम्मान की चाह ऐसे वक्त में होती है। अतः,एक पुरुष के लिए माँ और पत्नी के बीच संतुलन भी आवश्यक होता है,किंतु यहां पूरे परिवार में स्वार्थ त्यागकर पराए घर की बेटी को बहू की बजाय बेटी मानकर व्यवहार किया जाता है,तो किसी भी प्रकार की घटना दंगे-फसाद होने की कोई संभावना नहीं हो सकती। इन दो बातों से परे अगर व्यवहार होगा,तो निश्चय ही दरारें पैदा होंगी और ऐसे घिनौने कृत्य भी होंगेl
वर्षों पहले उत्तरप्रदेश की एक कवियित्री को मार दिया गया, एक अन्य महिला के अंग-अंग अलग कर तंदूर भट्टी में जलाकर साक्ष्य मिटाने के प्रयास हुए। अनेक घटनाएं होती गई है,इन घटनाओं को रोकने और कड़ी सजा देने का प्रावधान भी विधायिका द्वारा किया गया,फिर भी ऐसे जघन्य एवं शर्मसार करने वाले कृत्य रोक नहीं पा रहे हैं।
महिलाओं के प्रति छेड़छाड़,बलात्कार,यातनाएं,अनैतिक व्यापार,दहेज मृत्यु,यौन उत्पीड़न के साथ अब ऑनर किलिंग जैसे अपराधों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। यह स्थिति तब है,जब देश में महिलाओं को अपराधों के विरुद्ध कानूनी संरक्षण हासिल है।
भारतीय महिलाओं के अपराधों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने तथा उनकी आर्थिक और सामाजिक दशाओं में सुधार करने हेतु अनेक कानून बनाये गए हैं-अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम १९५६,दहेज प्रतिषेध अधि. १९६१,कुटुंब न्यायालय १९८४,अशिष्ट-रूपण प्रतिषेध १९८६,गर्भधारण पूर्व लिंग चयन प्रतिषेध १९९४,सती निषेध १९८७,राष्ट्रीय महिला आयोग १९९०,
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधि. २००५,बाल विवाह प्रतिषेध अधि.२००६ और कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न(निवारण,प्रतिषेध,प्रतितोष)अधि.२०१३ प्रमुख है।
२०१२ के नृशंस सामूहिक बलात्कार की घटना के विरुद्ध दंड विधि संशोधन २०१३ भी पारित किया किया गया। तेजाबी हमला करने वालों को १० वर्ष सजा,बलात्कार के बाद मृत्यु पर २० वर्ष की सजा का प्रावधान भी विधायिका द्वारा किया गया।
अब फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट का गठन भी किया जाकर कम समय में ही सजा हो सके,इसका प्रावधान भी किया जाकर हमने कुछ त्वरित फैसले भी देखे हैं। अब तो निर्भया के बाद मंदसौर इलाके में जघन्य कृत्य के बाद मोटर सायकिल का हैंडल निकलना कृत्यों की पराकाष्ठा है। ऐसे कृत्य की सार्वजनिक रूप से भर्त्सना तो की ही जानी चाहिए,बल्कि अपने-अपने सुझाव के साथ अपने तई प्रयास भी किये जाने चाहिए,ताकि प्रकृति की अनमोल धरोहर नारीअब प्रताड़ित न हो सके।

परिचय-विनोद वर्मा का साहित्यिक उपनाम-आज़ाद है। जन्म स्थान देपालपुर (जिला इंदौर,म.प्र.) है। वर्तमान में देपालपुर में ही बसे हुए हैं। श्री वर्मा ने दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर सहित हिंदी साहित्य में भी स्नातकोत्तर,एल.एल.बी.,बी.टी.,वैद्य विशारद की शिक्षा प्राप्त की है,तथा फिलहाल पी.एच-डी के शोधार्थी हैं। आप देपालपुर में सरकारी विद्यालय में सहायक शिक्षक के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत साहित्यिक,सांस्कृतिक क्रीड़ा गतिविधियों के साथ समाज सेवा, स्वच्छता रैली,जल बचाओ अभियान और लोक संस्कृति सम्बंधित गतिविधियां करते हैं तो गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षण सामग्री भेंट,निःशुल्क होम्योपैथी दवाई वितरण,वृक्षारोपण,बच्चों को विद्यालय प्रवेश कराना,गरीब बच्चों को कपड़ा वितरण,धार्मिक कार्यक्रमों में निःशुल्क छायांकन,बाहर से आए लोगों की अप्रत्यक्ष मदद,महिला भजन मण्डली के लिए भोजन आदि की व्यवस्था में भी सक्रिय रहते हैं। श्री वर्मा की लेखन विधा -कहानी,लेख,कविताएं है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचित कहानी,लेख ,साक्षात्कार,पत्र सम्पादक के नाम, संस्मरण तथा छायाचित्र प्रकाशित हो चुके हैं। लम्बे समय से कलम चला रहे विनोद वर्मा को द.साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)द्वारा साहित्य लेखन-समाजसेवा पर आम्बेडकर अवार्ड सहित राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा राज्य स्तरीय आचार्य सम्मान (५००० ₹ और प्रशस्ति-पत्र), जिला कलेक्टर इंदौर द्वारा सम्मान,जिला पंचायत इंदौर द्वारा सम्मान,जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा सम्मान,भारत स्काउट गाइड जिला संघ इंदौर द्वारा अनेक बार सम्मान तथा साक्षरता अभियान के तहत नाट्य स्पर्धा में प्रथम आने पर पंचायत मंत्री द्वारा १००० ₹ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही पत्रिका एक्सीलेंस अवार्ड से भी सम्मानित हुए हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-एक संस्था के जरिए हिंदी भाषा विकास पर गोष्ठियां करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के विकास के लिए सतत सक्रिय रहना है।

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