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महिला दिवस का औचित्य!

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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अस्तित्व बनाम नारी (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस)…

लो आ गया फिर महिला दिवस,
जी भर के आज मनाओ दिवस
सब मिल पूजा करो, आरती करो,
कविता लिखो और वंदना करो
उसकी हर जरूरत तुम पूरी करो,
फिर कल से तुम अत्याचार करो।

समझो एक दिन का है ये उत्सव,
जी भर के तुम मनाओ महोत्सव
लम्बे-चौड़े फिर तुम भाषण दे दो,
घर में जाकर तुम अत्याचार करो
मिल जाए तुम्हें कहीं अकेले में वो,
हैवान बन के तुम बलात्कार करो।

हर दिवस मना के सब भूल जाते,
एक दिन दिवस मना के क्या पाते
कल फिर दहेज हेतु उसे जलाओ,
पता लगा के भ्रूण हत्या कराओ
यही तो तुम लोगों की वो आदत है,
‘मुँह में राम बगल में छुरी’ कहावत है।

सब-कुछ करते हो दिखावे खातिर,
दिमाग तो है तुम्हारा बड़ा शातिर
सब दिवसों का हाल यही होता है,
एक दिन के लिए सब-कुछ होता है
दूसरे दिन से ही सब भूल है जाते,
फिर झूठ-मूठ के क्यों दिन मनाते ?

महिला दिवस तो तब ही सफल है,
हर पल उसे मिलता रहे सम्मान है
महिला है तभी तो हम सब पुरुष हैं,
उसके ही कारण हम सब दुरुस्त हैं।
आओ, घर-बाहर उसका सम्मान करें,
‘दूरदर्शी’ पुरुषत्व को सार्थक करें॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।