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माँ तुझे सलाम

डॉ.हरेन्द्र शर्मा ‘हर्ष’
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)
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कारगिल विजय दिवस स्पर्धा विशेष……….


चारों ओर घनघोर अंन्धकार पूर्ण रात्रि व्याप्त है। कमान्डर का आदेश है कि,रात्रि में ही पीपलनाल पहाडी़ पर आक्रमण कर कब्जा जमाना है,जिससे कि दुश्मन को भनक तक न लग सके। दुश्मन पहाड़ की ऊँची चोटी पर बेखबर होकर विराजमान है,और वह तलहटी में होकर भी उसे नेस्तनाबूद करने के लिये उतावले हो रहे। गठीले बदन और हँसमुख चेहरे वाले सुदर्शन व्यक्तित्व के स्वामी छब्बीस वर्षीय ले. विजयन्त और सौरभ कालिया की यारी के किस्से अक्सर पूरी यूनिट की हवाओं में तैरते ही रहते हैं। आज भी दोनों दोस्त कन्धे से कन्धा मिलाकर आपरेशन को अन्जाम तक पहुँचाने के लिये तत्पर हैं। ….विजयन्त जोश में भरकर सौरभ की आँखों में आँखें डालकर उसके हाथ को अपने हाथ में थाम कर अपने मित्र को चुनौती देता है।
“……यार आज तेरे और मेरे बीच एक प्रतियोगिता है,देखें कौन सबसे ज्यादा पाकिस्तानियों को टपकाता है। जिसकी संख्या ज्यादा होगी,वही आज के इस खेल का सिकन्दर होगा।”
विजयन्त की इस चुनौती को सुनकर सौरभ की भुजायें फड़कने लगी,उत्साह में भरकर वह हाथों से उसके कन्धे को जोर से दबाते हुए गरजा…….
“……..ऐसी बात है तो,कान खोल कर सुन ले मेरे यार। यह बात तो पहाड़ के ऊपर चल कर ही पता चलेगी, देखना मैं तुझसे ज्यादा ही लुढ़काऊँगा। तेरी यह चुनौती मुझे दिल से स्वीकार है।”
दोनों दोनों दोस्तों की इस मीठी तकरार को सुनकर,साथियों ने एक जोर का ठहाका लगाया। उस ठहाके की लहरियां उन अँधेरी घाटियों में ही बिखर कर रह गई। आँखों ही आँखों में मिशन की तरफ कूच करने का इशारा हो गया। बढ़ चले जाँबाज अपने लक्ष्य की ओर। बिना किसी आहट के पहाड़ को छिपकली की तरह सीने से चिपकाए धीरे-धीरे रेंग-रेंग कर पूरी टोली ने आखिरकार चोटी को स्पर्श कर ही लिया। यकायक ही तड़…तड़…धाँय…धाँय…की आवाजों ने उस स्थान की नीरवता को तोड़कर रख दिया। शत्रु भी चौंक कर,प्रहार करने लगा। घमासान युद्व छिड़ गया। सामने दुश्मन की गोलियों की बौछार तो,आकाश में आग उगलते भयानक गोलों के रुप में मौत बरसने लगी। कहीं तोपों के गोले गिर रहे हैं तो कहीं तड़…तड़..शू्ँ…..शूँ….धाँय ……धाँय…. की आवाजों के साथ राकेट उन निडर मतवालों के आस-पास इस प्रकार फटने लगे,मानों वह उन रणबाँकुरों का तहे दिल से स्वागत कर रहे हैं। इस नजारे से रुबरू होकर उन्हें दीपावली पर फूटते अनारों की मानिन्द समझकर ले.विजयन्त का उत्साह दूना हो गया। खुशी में उमग कर वह अपने मित्र सौरभ से बोला…-“……. देख सौरभ देख,अपने सामने जैसे अनार फट रहे हैं..तुझे अच्छा लग रहा है न!” सौरभ भी उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ चहका।
“…..हाँ,तू सच कह रहा है मेरे यार,ऐसे अनार-पटाखे तो हम दीवाली पर खूब चलाते हैं। आज मुफ्त में चलाने में मजा आ रहा है।”
दो यारों की इस चुहलबाजी ने उस बोझिल माहौल में इक रवानगीं भर दी। इस दृश्य को देखकर पूरी टोली,बैरी से दो-दो हाथ करने और जूझने को उद्धत हो उठी। कारगिल क्षेत्र की ग्यारह हजार फुट ऊँची प्रमुख तोलोलिंग चोटी पर ले. विजयन्त और ले. सौरभ कालिया अपने साथियों के साथ जूझ रहे हैं। दुश्मनों का वहाँ से सूपडा़ साफ कर अपना कब्जा जमाना है,यही कमान्डर का का आदेश है। इसी हुक्म की तामील करने के लिये देश के मस्ताने डटे हैं सीना तान कर गोलियों की बौछार रुपी मौत के सामने। मानों जैसे उनमें होड़ लगी हो कि,कौन बाजी मारता है। चारों ओर से आहों और कराहटों के मर्मभेदी स्वर उन शीतल हवाओं में तैर कर उन्हें भी गर्म करने लगे। द्रास सैक्टर का पीपल नाल पहाड़,बलिदानियों के रक्त से रंजित होकर जीवन्त हो उठा।.
अचानक ही दम तोड़ते दुश्मन के स्टेनगन की तमाम गोलियाँ…तड़….तड़….तड़…तड़ की आवाज के साथ ले. सौरभ कालिया के शरीर में जज्ब हो जाती हैं। गोलियाँ लगते ही सौरभ के शरीर में एक फुर्ती-सी आ जाती है। दना-दन कर फिर उसका हथियार भी आग उगलने लगता है। अपने सामने लगे लाशों के ढेर पर वह लड़खड़ा कर गिरने वाला ही होता है कि,तभी विजयंत की मजबूत भुजायें आगे बढ़कर खून से लथपथ अपने यार को थाम लेती है। अश्रुओं का अविरल प्रवाह नेत्रों से निकल कर गालों पर बहने लगता है। सिसकियाँ गले में ही घुट कर दम तोड़ देती हैं,और अस्फुट स्वर हवा में तैरता है…
“…….मेरे यार मुझसे पहले ही चल दिया,तूने तो अपना फर्ज अदा कर दिया,मगर अभी मेरा बाकी है। मुझे तेरी जान की सौगन्ध हैl मैं तेरी इस कुर्बानी का बदला एक…एक पाकिस्तानी से गिन-गिन कर लूँगा।”
कुछ क्षण के लिये वह सिसक उठता है,फिर आक्रोश में भरकर फुँफकारता है..
“……..माँ कसम,मेरे दोस्त मैं तेरी मौत को व्यर्थ नहीं जाने दूँगा। मेरा तुझसे यह वादा है कि इस पहाड़ की चोटी पर तिरंगा फहरा कर जिन्दगी की अन्तिम साँस लूँगा..अलविदा मेरे यार।”
तभी गोलों और धमाकों के शोर के मध्य साथी जमील की बुलन्द आवाज गूँजती है..
“………भाई..यह वक्त मातम मनाने का नहीं है। देख सामने छाती पर दुश्मन खडा़ है,उठा अपनी स्टेनगन और ले ले यार की मौत का इन्तकाम।”
जमील के इन गरजते बोलों ने जड़वत् विजयन्त की जड़ता को तार-तार कर दिया। अपने मित्र सौरभ की मौत का ख्याल जेहन में कौंधते ही सीने में धधकती ज्वाला ने विकराल रुप धारण लिया। सामने पड़ी स्टेनगन तत्काल ही हाथों की शोभा बढ़ाने लगी। उस पर एक जुनून-सा सवार हो गया। वह लगातार दुशमनों की सँख्या कम करता चला गया। आग उगलती स्टेनगन और गोलों ने कुछ ही समय पश्चात वहाँ लाशों का अम्बार लगा दिया। अचानक एक गोली सनसनाती आती है,और आकर कन्धे में घुस जाती है। वह अभी संभल भी नहीं पाता कि,दूसरी गोली तेजी के साथ आकर वक्षस्थल पर शोभायमान हो जाती है। इन गोलियों के लगते ही ले. विजयन्त के शरीर में चीते-सी फुर्ती आ जाती है। उसकी स्टेनगन ने फिर से शोले उगलने आरम्भ कर दिए। सारे दुश्मन पल में ही धराशायी हो गये कि,तभी दम तोड़ते शत्रु की सामने से आती गोली सीने में जा धँसी, दिल चीथड़ों में बदल गया। अपने सामने लगे लाशों के ढेर के साथ ही विजयन्त भी गिर पड़ता है। अपने मित्र सौरभ कालिया की मौत का बदला लेकर,उसके चेहरे पर विजयभरी आभा सुशोभित हो रही है। वह अपने मन की प्रसन्नता व्यक्त करते हुए साथी जमील से गर्वीले स्वर में हुँकारता है।..
“……ओ..ए….जमील देख,आज तो कमाल हो गया।” अँगुली से सामने की ओर इशारा कर…
“…….देख मैंने कितने सारे पाकिस्तानियों का ढेर लगा दिया है….आह….आह…ह…”
शरीर पर लगी गोलियों के घावों से बह रहे रक्त ने दर्द को और बढ़ा दिया था। उसकी हालत को देखकर जमील उसका उत्साह बढ़ाता हुआ बोला…
“…. वाह! खुदा कसम तूने तो वाकई में कमाल कर दिखाया।”
गर्व से सीना तान कर गर्वीली मुस्कराहट के साथ विजयन्त बोला-“जमील मैंने अपना वादा पूरा कर दिया हैl देख आज पीपल नाल पहाड़ फिर से शत्रुविहीन हो गया है। यह मेरे रक्त से सराबोर होकर और भी सुन्दर लगने लगा है,और मेरा जिगरी यार सौरभ सामने खड़ा मुस्करा रहा है।”
जमील,विजयन्त की इन बातों को सुनकर सुबकने लगा,गालों पर बह आए आँसूओं को अपनी हथेली से पोंछकर….
“विजयन्त,तूने तो अपना हक अदा कर दिया,मेरे यार! परन्तु मैं अभी भी बाकी हूँ।”
विजयन्त दर्द से कराहते हुऐ कहता है…
“हाँ दोस्त,मेरा कार्य तो पूरा हो गया,मगर मैं अपनी अन्तिम इच्छा के रुप में इस पीपल नाल पहाड़ पर,माँ भारती का तिरंगा फहराता हुआ देखना चाहता हूँ।”
“ले मैं तेरी इस ख्वाहिश को अभी पूरी किए देता हूँ।” यह कह कर जमील तेजी के साथ उठकर,वहीं पास में पड़ी एक डंडी को उठाकर लाता है,और फिर अपनी पीठ पर बंधे पिठ्ठू को खोलकर,उसमें से तिरंगा निकाल कर उसे डंडी में लगाकर,हाथों को ऊपर उठाकर पीपल नाल पहाड़ी के बीचों-बीच खड़े होकर,झण्डे को हवा में फहराता हुआ कहता है..
“देख विजयन्त देख,मैंने आज पीपल नाल की छाती पर अपना तिरंगा गाढ़ दिया है।”
तिरंगे झण्डे को फहराता हुआ देखकर विजयन्त की बोझिल पलकों वाली आँखों में आँसू आ जाते हैं। वह अपनी टूटती आवाज में खुशी जाहिर करते हुए कहता है…
“हाँ मेरे दोस्त,..आज भी मैं ही विजयी हूँ।”
इन टूटते शब्दों के साथ ही अचानक उसकी भारी पलकें बन्द होने लगती है। सीधा हाथ सलाम की मुद्रा में मस्तक को छूता है। होंठों से एक तेज बुदबुदाहट उभरती है..
“वन्दे मातरम्..वन्दे मातरम्….जय माँ भारती…माँ तुझे सलाम…माँ तुझे सलाम…आह…आह…” की दर्दीली कराहट के साथ ही विजयन्त का जिस्म निर्जीव होकर एक तरफ लुढ़क जाता है। उस वक्त एक रक्तिम आभा शहीदों के चेहरों पर सुशोभित होने लगी। चोटी दुश्मनविहीन हो गई। आज भी कारगिल की उन दुर्गम चोटियों की शीतल हवाओं में तिरंगा जब फहराता है,तो घाटी की उन गहरी वादियों में एक ही आवाज गूँजती रहती है..माँ तुझे सलाम..माँ तुझे सलाम...l

परिचय-डॉ.हरेन्द्र कुमार शर्मा का साहित्यिक उपनाम ‘हर्ष’ है। १९६३ में १ फरवरी को ग्राम चरौरा(जिला- बुलन्द शहर)में जन्में श्री शर्मा का स्थायी बसेरा वर्तमान में बुलन्दशहर में ही है। उत्तर प्रदेश निवासी डॉ.शर्मा को हिन्दी,संस्कृत तथा अँग्रेजी भाषा का ज्ञान है।एम.ए.,बी.एड., एल.एल.बी. और विद्मावाचस्पति आपकी शिक्षा होकर कार्य क्षेत्र-अध्यापन का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत मंच संचालन, एकांकियों का मंचों पर प्रदर्शन एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं को आयोजित कराते हैं। लेखनविधा-गद्म-पद्म दोनों में ही गीत, ग़ज़ल, कविता, कहानी, उपन्यास और लघुकथा आदि रचते हैं। संग्रह में आपके खाते में-मोक्ष की तलाश,मुठ्ठी में कैद,कहानी संग्रह-भोर की किरण सहित उपन्यास-निराशा छोडो़ सुख जियो,जैसा चाहें जीवन पायें एवं पद्म में-हादसों का सफर,चिरागों को जला दो, इन्द्रधनुषी ग़ज़लें आदि हैं। ग़ज़ल-गीत संग्रह के साथ ही आपकी रचनाएं कई दैनिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। अगर सम्मान की बात हो तो डॉ.शर्मा को सम्मान-पुरस्कार में-साहित्य विद्मालंकार,समाज रत्न,साहित्य सरताज,आचार्य,साहित्य श्री,रचना सम्मान, काव्य वैभव और परम श्री सम्मान मिला है। अमेरिकन बायोग्राफिकल इन्स्टीटयूट् के शोध मंडल में सलाहकार होकर हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की मानद सदस्यता भी है। इनकी विशेष उपलब्धि-सामाजिक कार्यों में प्रतिभागि ता करना,विभिन्न संस्थाओं की स्थापना,नाटक व नुक्कड़ नाटकों का प्रदर्शन है।

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