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मानवता दीपक जले

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, माँ काली अवतार।
उत्सव नरक चतुर्दशी शुभ, करे पाप संहार॥

शुभ छोटी दीपावली, हो जीवन उजियार।
रिश्तें हों स्नेहिल मधुर, बहे समुन्नत धार॥

दीवाली त्यौहार में, आये खुशी बहार।
जले खुशी की फुलझड़ी, प्रेम शान्ति उपहार॥

दीपक जगमग दिशाएँ, मिटी अमावस रात।
धनवर्षा लक्ष्मी करे, मिले सुखद सौगात॥

मर्यादा दीपक चरित, समझो प्रभु वरदान।
तुम ईश्वर के अंश हो, आत्म तत्व कर ज्ञान॥

मानवता दीपक जले, शान्ति प्रीत जय घोष।
सकल कीट छल मद कपट, जले मनुज सब दोष॥

कर्म दीप आलोक से, आलोकित संसार।
दया क्षमा करुणा हृदय, दीप जले उपकार॥

नीति न्याय सद्मार्ग हो, शील त्याग गुण कर्म।
पड़े दीप की रोशनी, संवेदन हिय मर्म॥

राजधर्म के दीप से, ज्योतिर्मय सरकार।
दशा-दिशा उन्नति वतन, भ्रातृभाव संसार॥

प्रेम दीप की आवली, उज्ज्वल चिन्तन लोक।
मिटे सकल दुर्भावना, लोभ क्रोध मद शोक॥

विजय दीप अनुपम प्रभा, नाशक विघ्न अपार।
खुशियाँ मुख मुस्कान से, अपनापन विस्तार॥

आलोकित जाग्रत सुपथ, संभावना अनेक।
मति विवेक दीपक जले, हो श्रद्धा उद्रेक॥

अहंकार दानव दहन, हो मानव अभिषेक।
सत्य न्याय दीपक जले, हों भारत हम एक॥

दीया जले सद्भावना, मिटे जाति का घाव।
धर्म सनातन भाव हिय, सर्व-धर्म सम्भाव॥

गौरव संस्कृति भारती, स्वाभिमान हो देश।
ज्ञान बुद्धि श्रम की दिआ, सिद्धि विजय संदेश॥

कीर्ति ज्योति सद्धर्म का, विजय दीप उत्थान।
दीप जले परमार्थ का, रखें लाज इन्सान॥

दीप जले विज्ञान का, शौर्य दीप द्युतिमान।
मंगलमय दीपावली, जगमग हो ईमान॥

मातृशक्ति आदर दिआ, ममता करुणा प्रीति।
निर्भय वह सबला बने, ज्ञान दीप मनमीत॥

फैले दुनिया रोशनी, दीप सनातन पर्व।
कवि ‘निकुंज’ कुसुमित प्रभा, बिखरे खुशियाँ सर्व॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥