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मानवता मरती

पायल अग्रवाल
मुजफ्फरपुर (बिहार)
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कब तक अबला बनती श्रद्धा, टुकड़े में कटती।
जाग-जाग सोये अब तुम सब, मानवता मरती॥

तोड़े विश्वास प्यार पल में, क्या तुमको मिलता।
शोभा होती तेरे घर की, आँगन है खिलता॥
तब प्रकोप कलयुग का दिखता, बहुत डरी रहती।
जाग-जाग सोये अब तुम सब, मानवता मरती॥

था अरमान बहुत जीने का, माँ रो-रो कहती।
हश्र अगर ऐसा होता तब, नारी क्यों बनती॥
बुरी दशा देखो नारी की, पीड़ा सब सहती।
जाग-जाग सोये अब तुम सब, मानवता मरती॥

सही नहीं जाये पीड़ा अब, कष्ट सभी हरना।
रह मर्यादा में जग रीती, ध्यान सदा रखना॥
मानो तुम संस्कृति घर की अब, सीख यही रहती।
जाग-जाग सोये अब तुम सब, मानवता मरती॥

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