कुल पृष्ठ दर्शन : 771

मानव की पहचान

डॉ.अ‍र्चना दुबे 
मुम्बई (महाराष्ट्र)

**************************************************************************

सेवा शिष्टाचार ही,मानव की पहचान।

जन प्रत्येक इसीलिए,दिख रहे परेशानl

दिख रहे परेशान,आचरण अच्छा रखना।

किये नहीं सत्कार,कहेंगे कैसे अपना।

रीत कहे यह बात,मिलेगा कैसे मेवा।

अच्छे रखो विचार,करो तुम सबकी सेवाll

पक्षी सब आजाद हैं,नभ के छूते छोर।

दाना-पानी कर लिये,पंखों में है जोर।

पंखों में है जोर,देखते सपने सारे।

उड़े पूर्व की ओर,साथ में लगते प्यारे।

‘रीत’ डरे यह देख,जंगलों में नरभक्षी।

उड़ते देख समूह,गुलेल से मारे पक्षी॥

नाथ हमारे कह गये,मानव तन अनमोल।

धन्य करो जीवन सभी,त्यागो मीठे बोल।

त्यागो मीठे बोल,सत्य की बात निराली।

सच्चाई अनमोल,नहीं जायेगी खाली।

‘रीत’ कहे यह बात,ध्यान से सुन ले प्यारे।

गलती को ले मान,कहे यह नाथ हमारे॥

भाई-भाई अब यहां,लड़ना है बेकार।

फूल बनें कांटे नहीं,रखिये नेक विचार।

रखिये नेक विचार,आज खुद को समझाओ।

हो जाओ एकसाथ,घर अभी स्वर्ग बनाओ।

देख यही है ‘रीत’,हटाओ मन से काई।

ये है घर परिवार,रहो मिल भाई-भाई॥

सपना का भारत बसे,लागे मस्त जहान।

सही लगे कितना वतन,होता जन कल्याण।

होता जन कल्याण,बात लागे यह प्यारा।

भारत अपना देश,सुखों का है परिवारा।

‘रीत’ दे रही साथ,मान यह बतिया सजना।

सदैव करो विकास,सजे भारत का सपना॥

पूरब सूरज की दिशा,दिखे किरण के साथ।

किरणें आती जब धरा,ओस न आये हाथ।

ओस न आये हाथ,धूप की तेजी बढ़ती।

सुख चलें सब बूंद,देख दोपहरी चढ़ती।

‘अर्चना दुबे’ सुबह,सभी रटते अपना रब।

दोपहरी में सूर्य,नहीं दिखता जब पूरब॥

सारा नभ बादल ढंके,धूप कहां से आय।

ठंडी ऐसी लग रही,कम्पन बढ़ती जाय।

कम्पन बढ़ती जाय,धूप लगती है प्यारी।

बदरी छँटती देख,मिले राहत फिर भारी।

‘अर्चना दुबे’ सेंक,धूप का सुख दें न्यारा।

लुभा रही रवि किरण,दिखा हाल कहा सारा॥

बात करों सोचो जरा,उस पर करो विचार।

इक दिन यही आयेगा,कर दूंगा इंकार।

कर दूंगा इंकार,यही था मैं समझाता।

बार-बार यह बात,तुम्हें न मैं बतलाता।

‘अर्चना’ कर भगवन,पड़ें ना कोई लोचा।

फिर करना ना गलत,काम जो तुमने सोचा॥

आओ दिन पावन बड़ा,कर लो सबसे मेल।

अवसर ऐसा मिल रहा,खेलो अब मिल खेल।

खेलो अब मिल खेल,अनोखा अवसर पाये।

करो न सोच विचार,सफलता ही मन भाये।

‘रीत’ कहे यह बात,सीखने तुम ही जाओ।

रुको नहीं तुम आज,सीख करके ही आओ॥

राम मिले कृष्णा मिले,मिलते दीनानाथ।

आस लगाये हूँ पड़ी,राम हमारे साथ।

राम हमारे साथ,बोलिये मिल जयकारा।

ऐसे दीनानाथ,लगाओ मिलकर नारा।

‘रीत’ कहे दिन-रात,हृदय में वहि फूल खिले।

पूजा करना साथ,शीघ्र अब प्रभु राम मिले॥

सैनिक सीमा पर खड़े,लड़ते हैं दिन-रात।

मान देश का है बढ़ा,करते हैं सब बात।

करते हैं सब बात,दिखाते चौड़ा सीना।

अरि का कर संहार,तभी जल को है पीना।

‘रीत’ कहे यह बात,हौंसला रखना दैनिक।

दिखलाते औकात,वीर भारत के सैनिक॥

परिचय-डॉ.अर्चना दुबे का बसेरा जिला पालघर (मुम्बई)स्थित नालासोपरा (पूर्व) में है। आपकी जन्मतिथि ५ फरवरी १९८३ एवं जन्म स्थान-जिला जौनपुर (उत्तर प्रदेश)है। एम.ए.,पी-एच.डी. तक शिक्षित अर्चना जी का कार्यक्षेत्र स्वच्छंद लेखन कार्य है। लेखन विधा-गीत,गज़ल, लेख, कहानी, लघुकथा, कविता और समीक्षा आदि है। २ साझा काव्य संग्रह आ चुके हैं तो कई रचनाओं का प्रकाशन अनेक अखबारों-पत्रिकाओं में हुआ है। एक अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में भी लेख प्रकाशित हुए हैं। आपने हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई)में सह सम्पादक का कार्य भी किया है। आप १२ से ज्यादा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन भी कर चुकी हैं। 

Leave a Reply