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मानव सेवा धर्म हमारा

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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सबमें ही इक तत्व समाया,
ना कोई है उससे न्यारा।
यही सभ्यता संस्कृति अपनी
मानव सेवा धर्म हमारा॥

चन्द पलों का जीवन है ये,
सुख-दु:ख का है आना-जाना।
परिवर्तन की भाग-दौड़ में,
बुनते जाते ताना-बाना॥
सदा-सदा ही रहे न कोई,
नाशवान है ये जग सारा।
यही सभ्यता संस्कृति अपनी,
मानव सेवा धर्म हमारा…॥

ये मेरा ये तेरा जग में,
करते-करते जीवन बीता।
पाया कुछ भी नहीं यहाँ पर,
अंत यहाँ सब कुछ है रीता॥
फिर भी पशुवृत्ति अपनाकर,
लगा स्वार्थ में ये जग सारा।
यही सभ्यता संस्कृति अपनी
मानव सेवा धर्म हमारा…॥

राजा हो या रंक जगत में,
इक दिन सबको ही है जाना।
कर ले कर्म सभी कुछ परहित,
संतुष्टि सुख का पैमाना॥
मत करना अभिमान कभी भी,
सदा रहा अभिमानी हारा।
यही सभ्यता संस्कृति अपनी,
मानव सेवा धर्म हमारा…॥

ईश्वर की रचना हैं हम सब,
हममें कोई भेद नहीं है।
राह प्रेम की अपनाएं सब,
सत्य सनातन रीति यही है॥
वैर भाव को त्यागें मिलकर,
यही बने अब जीवन धारा।
यही सभ्यता संस्कृति अपनी,
मानव सेवा धर्म हमारा॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा) डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बड़ियाल कलां,जिला दौसा (राजस्थान) में जन्मे नवल सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी.,साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ से अधिक पुस्तक प्रकाशित हैं। आपकी कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो,
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’