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मेरी माँ

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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माँ तू जन्मदायिनी मेरी तू मेरा संसार है।
मुझको लाई इस दुनिया में मुझ पर ये उपकार है॥

किलकारी सुनकर के मेरी माँ का मन हर्षाया था,
ले गोदी में तब माँ ने सीने से मुझे लगाया था।
खुशियों ने दस्तक दी घर में सारे घर उल्लास भरा,
पूरी हुई कामना मन की चाँद जमीं पर था उतरा।
जुग-जुग जिये राजदुलारा ये घर का आधार है,
मुझको लाई इस दुनिया में…॥

घुटने-घुटने लगा दौड़ने खड़ा हुआ लड़खड़ाया,
माँ ने ऊँगली पकड़ मुझे पैरों पर चलना सिखलाया।
आँचल की छाया देकर फिर पान कराया अमृत का,
टुकुर-टुकुर मैं माँ की सूरत देख रहा था विस्मृत-सा।
भाव विभोर कह उठी माँ ये मेरा राजकुमार है,
मुझको लाई इस दुनिया में…॥

कष्ट अनेकों सह कर मैया मुझे देख कर रोती थी,
लेकिन वो आँसू की बारिश खुशियों वाली होती थी।
फूली नहीं समाती थी वो मेरे कार्यकलापों पर,
रहती नज़र हमेशा मेरे हाथ पैर की छापों पर।
हो निधि जैसे रखे सुरक्षित देखे सौ सौ बार है,
मुझको लाई इस दुनिया में…॥

ये जो भी लिक्खा मैंने सब माँ ने ही बतलाया था,
देखा जब संदूक खोल तो सभी सुरक्षित पाया था।
आज नहीं है गयी छोड़ कर माँ जाने किस लोक कहाँ,
याद करूँ आँखें भर आती तड़प रहा हूँ मैं बिन माँ।
मैं दरिया का एक किनारा गयी छोड़ मँझधार है,
मुझको लाई इस दुनिया में…॥

तुझ बिन मैया यहांँ मुझे सब सूना-सूना लगता है,
सारी दुनिया सोती है तेरा ये बेटा जगता है।
ऊब गया हूँ इस दुनिया से मुझको पास बुला ले तू,
दे आँचल से हवा गोद में अपनी मुझे सुला ले तू।
मैं हूँ और अकेलापन ही मेरा अब परिवार है,
मुझको लाई इस दुनिया में…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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