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मेरी सखी

वीना सक्सेना
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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बेटे की शादी की तैयारियां लगभग पूर्ण हो गई थी। घर मेहमानों से भरा हुआ था। सिर्फ दो दिन बचे थे। आज हल्दी थी,कल महिला संगीत होगा,और परसों शादी..कि अचानक दरवाजे से मेरे पति की आवाज आई.. “अरे देखो कौन आया है..?”
मैंने बाहर जाकर देखा तो रेखा खड़ी थी।रेखा मेरी पंद्रह-बीस साल पुरानी सखी,उसे देखते ही मेरी बांछें खिल गई..और मैं उससे जाकर जोर से लिपट गई।वह भी पूरे जोश और खुशी से हँसते हुए मुझसे लिपट गई। मैंने उसे घर मैं अपने सारे रिश्तेदारों से मिलवाया। वह थोड़े ही समय में सबसे घुल- मिल गई। उसने घर के एक सदस्य जैसा घर के कार्यों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया,सब मेहमानों को खाना खिलवाना,बरतन उठवाना ,सफाई करवाना। मेरा कमरा जो हमेशा अस्त-व्यस्त पड़ा रहता था,और इसलिए मैं हमेशा काम हो जाने के बाद बंद ही कर देती थी,क्योंकि उसमें मेरा कीमती सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा रहता था,उसने उसे व्यवस्थित किया और बहुत सारी जगह बनाई। मुझे भी उसको अपनेपन से काम करते हुए देख कर बड़ी खुशी होती थी और गर्व भी होता था। सभी रिश्तेदार हमारी दोस्ती की बहुत प्रशंसा करते..-देखो गीता की सहेली कितनी अच्छी है..घर जैसा सबका ख्याल रख रही है।वह हर काम में मेरा सहयोग करती थी,इसलिए मैं थोड़ी-सी लापरवाह हो गई थी। इस बात पर वह मुझे झिड़क देती थी। आज शादी थी,शाम को सभी लोग तैयार होकर होटल चले गए। मैं सबसे बाद में निकली। उसने मेरा सारा सामान एक बैग में रखा और हम लोग होटल पहुंच गए। समारोह में बहुत सारे मेहमान आए,लेकिन जब दूल्हा-दुल्हन को लोग लिफाफे दे रहे थे,तो हमारे पास उन्हें रखने के लिए कोई वस्तु नहीं थी। हम बड़े परेशान थे कि तभी रेखा न जाने कहां से एक छोटा पतला बैग लेकर के आई। उसने कहा-” लिफाफे ही तो हैं आराम से इसमें आ जाएंगे।”, हमने उस बैग में लिफाफे रखना शुरू करवा दिया। वह सही कह रही थी इतने सारे मेहमानों के लिफाफे उस बैग में आराम से आ गए। हम लोग बड़े खुश हुए और उसकी प्रतियुत्पन्नमति से प्रभावित भी। फिर सानंद शादी सम्पन्न हुई। हम लोग घर आ गए,लेकिन हमारे रिश्तेदार वहीं रुक गए थे, क्योंकि रात में फेरे होने बाकी थे। चूंकि,माँ फेरे नहीं देखती,इसलिए मैं घर आ गई थी..रेखा भी मेरे साथ आ गई थी। मैं बहुत थक चुकी थी,इसलिए आते ही निढाल हो गयी,लेकिन रेखा ने रात को ही मेरे सारे कमरे को व्यवस्थित किया,और मेरे साथ सो गई।
सुबह अचानक ५ बजे रेखा ने मुझे जगाया और कहा-“गीता मुझे जाना पड़ेगा।” मैंने पूछा -क्यों ?’
मैं नींद और थकान से बुरी तरह भरी हुई थी। उसने बोला कि-“मुझे घर से पति का फोन आया है कि,मेरी छोटी बेटी मुंबई से आई है।” मैंने कहा कि-“घर पर भाई साहब हैं,उसे देख लेंगे…थोड़ी देर में तो नई बहू आ ही जाएगी.. उसका स्वागत कर फिर तुम नाश्ता वगैरह करके चली जाना..”,पर वह जिद पर अड़ गई। कहने लगी-“नहीं मुझे अभी ही जाना होगा..।”
मुझे उससे बहुत मदद मिली थी,इसलिए मैंने भारी मन से उसको बिदा किया। उसने हक से अपनी बेटी के लिए भी मुझसे बिदाई का पूरा सामान मांगा..और मैंने खुशी-खुशी दिया। “मुझे बहुत खुशी हुई कि तुमने समय पर आकर सारा काम संभाल लिया”,कह कर मैंने उसे विदा किया। वह चली गई,थोड़ी देर बाद सवेरा हो गया। अब मुझे नींद नहीं आ रही थी,और नई बहू भी आने वाली थी तो मैं उसकी तैयारी करने लगी। तैयारी करते समय में सोच रही थी कि रेखा ने मुझसे कहा था कि वह सुबह फूलों की रंगोली बनाएगी..
लेकिन क्या करें,उसका जाना भी जरूरी होगा सोचकर मैं खुद ही फूलों की रंगोली बनाने लगी।नई बहू घर आ चुकी थी और मेहमान भी…फिर से घर में रौनक और चहल-पहल हो गई थी।
शाम को ४ बजे थोड़ी फुर्सत हुई तो घर के एक बुजुर्ग ने कहा-“लाओ तुम्हारा व्यवहार एक डायरी में लिख दें..जो कल तुम्हें मिला था..और हम देख भी लें कि किसने क्या दिया है..। ” मैं भी खुश हो गई कि चलो एक काम और निपट जाएगा। मैं कमरे में आई और मैंने बैग ढूंढा,लेकिन मुझे वह कहीं नहीं दिखा। अलमारी से लेकर सब जगह ढूंढ लिया,लेकिन मुझे बैग नहीं दिखा। अरे यह क्या! रेखा की तो दो साड़ियां यहीं रह गई। मैंने सोचा कि,जल्दी-जल्दी में भूल गई होगी। सारा कमरा छान मारा,परंतु मुझे बैग कहीं नहीं मिला। मैं सोचने लगी कि आखिर बैग गया कहां होगा..क्योंकि जबसे रेखा गई थी उसके बाद तो मैं अपने कमरे में ताला लगाने लगी थी..तो क्या बैग…।
घर का माहौल एकदम बदल गया, लोगों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था..पर अब मैं सब समझ चुकी थी…।

परिचय : श्रीमती वीना सक्सेना की पहचान इंदौर से मध्यप्रदेश तक में लेखिका और समाजसेविका की है।जन्मतिथि-२३ अक्टूबर एवं जन्म स्थान-सिकंदराराऊ (उत्तरप्रदेश)है। वर्तमान में इंदौर में ही रहती हैं। आप प्रदेश के अलावा अन्य प्रान्तों में भी २० से अधिक वर्ष से समाजसेवा में सक्रिय हैं। मन के भावों को कलम से अभिव्यक्ति देने में माहिर श्रीमती सक्सेना को कैदी महिलाओं औऱ फुटपाथी बच्चों को संस्कार शिक्षा देने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आपने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है।आपकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक़ी हैं। आप अच्छी साहित्यकार के साथ ही विश्वविद्यालय स्तर पर टेनिस टूर्नामेंट में चैम्पियन भी रही हैं। `कायस्थ गौरव` और `कायस्थ प्रतिभा` सम्मान से विशेष रूप से अंलकृत श्रीमती सक्सेना के कार्यक्रम आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुए हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख प्रकाशित हो चुके हैंl आपका कार्यक्षेत्र-समाजसेवा है तथा सामजिक गतिविधि के तहत महिला समाज की कई इकाइयों में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैंl उत्कृष्ट मंच संचालक होने के साथ ही बीएसएनएल, महिला उत्पीड़न समिति की सदस्य भी हैंl आपकी लेखन विधा खास तौर से लघुकथा हैl आपकी लेखनी का उद्देश्य-मन के भावों को अभिव्यक्ति देना हैl

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