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मैं और प्रेमिका

सुजीत जायसवाल ‘जीत’
कौशाम्बी-प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
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सब ज्योतिषी,पंडित बोलें,हस्त मेरे नहीं है प्रेम की रेखा,
पर प्रणय के जल में भीगा,शाम जब उनको भीगते देखा।
नैन में कजरा,नव पुष्प कली-सी,हैं वो मंद-मंद मुस्काती,
शब्द नहीं मैं कैसे लिख दूँ,है मुख उनका नव चँद्र अनोखा॥

नव यौवन,मम हिय प्रिय वक्षस्थल,उनका नख है नुकीला,
तुहिन सदृश वर्षा जल शोभित,तन स्पर्श से बना रसीला।
प्रेम का हुआ संचार हृदय में,मैं एकटक देखता रह गया,
प्रेमानंद लीन हो गया जो देखा कोमल कटि भाग कटीला॥

सुखद,सुगंध इत्र-सा दमके,जब-जब वो श्वास को छोड़ें,
केश संवारें संग नाज़ुक कलाई,चिमटी से जुल्फ को मोड़ें।
वो है मृगनयनी,रूप सुंदरी,हूँ भ्रमित मैं बहक न जाऊं,
हो गया फ़िदा तब दिल मेरा,मोहिनी जब,पल्लू निचोड़ें॥

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