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मोदी को मुस्लिम सम्मान-पाकिस्तान को करारा सबक

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यों तो पहले भी कई मुस्लिम देशों की यात्रा कर चुके हैं,लेकिन इस बार उनका संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बहरीन जाना विशेष महत्व का है। बहरीन जानेवाले वे पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। असली बात यह है कि इन दोनों मुस्लिम देशों में वे गए हैं दो प्रमुख घटनाओं के बाद। पहली घटना पुलवामा-बालाकोट कांड और दूसरी कश्मीर से धारा ३७० और ३५-ए को खत्म करने के बाद। इन दोनों घटनाओं के बाद पाकिस्तान समझ रहा था कि दुनिया के मुस्लिम देश भारत की भर्त्सना करेंगे,और उसके आँसू पोंछेंगे, लेकिन कश्मीर के मामले में सबसे पहले दो देशों ने भारत का समर्थन किया। वे थे-यूएई और मालदीव। इन दोनों मुस्लिम देशों का समर्थन पाकिस्तान के मनोबल के लिए बड़ा धक्का था,अब यह धक्का और भी गहरा हो गया है। अबू धाबी के शेख मुहम्मद नाह्यान ने न सिर्फ मोदी को वहां का सर्वोच्च सम्मान (आर्डर आफ जायद) दिया,बल्कि उन्हें अपना ‘भाई’ कहा और ‘अपने दूसरे घर में’ उनका स्वागत किया। यह सम्मान पहले रुस और चीन के पुतिन और शी को दिया गया था। इस अवसर पर महात्मा गांधी की स्मृति में डाक टिकिट भी जारी किया गया। बहरीन ने भी अपना सर्वोच्च सम्मान मोदी को दिया और २०० साल पुराने श्रीजी मंदिर के पुनर्निर्माण की भी घोषणा की। क्या इससे पाकिस्तान के घावों पर नमक नहीं छिड़क गया होगा ?, बिल्कुल छिड़क गया है। पाकिस्तान की सीनेट के अध्यक्ष सादिक संजरानी ने गुस्से में आकर अपनी दुबई-अबूधाबी यात्रा रद्द कर दी। पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी इस्लामी संगठन में इसलिए भाग नहीं लिया था कि,भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज वहां पुलवामा-बालाकोट पर बोलने वाली थीं। पाकिस्तान के इन तेवरों का इन प्रमुख मुस्लिम देशों पर कोई असर नहीं हो रहा है। मोदी को घोर सांप्रदायिक और फासीवादी कहने वाला पाकिस्तान यह क्यों भूल गया कि उन्हें सउदी अरब, फलीस्तीन और अफगानिस्तान भी अपने सर्वोच्च पुरस्कार दे चुके हैं। पाकिस्तान की शै पर जिंदा रहनेवाले अलगाववादी और आतंकवादियों को क्या यह पता नहीं चल रहा है कि अब सारी दुनिया कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला मान रही है ? उन्हें अब ऐसा ही समझकर कश्मीरियों की खुशहाली,सुरक्षा और संपन्नता की भरपूर कोशिश करनी चाहिए।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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