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मौलिकता को परिभाषित करती है साहित्य की सृजनात्मकता

दिल्ली।

साहित्य की सृजनात्मकता ही साहित्य की मौलिकता और संवेदनशीलता को परिभाषित करती है। साहित्य वही रुचिकर और समावेशी होता है, जो लोक के द्वारा स्वीकृत कर लिया जाए। रचनात्मक कौशल सिर्फ साहित्य में ही नहीं होता, बल्कि विज्ञान, वाणिज्य, मानविकी अर्थात समाज के सभी क्षेत्रों में सृजनात्मकता का अपना महत्व है।
भगत सिंह महाविद्यालय द्वारा आयोजित वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि के रुप में यह बात लेखक और सम्पादक डॉ. आशीष कंधवे ने कही।
सृजन:हिंदी साहित्य सभा द्वारा आयोजित ‘साहित्य की सृजनात्मकता’ विषय पर केंद्रित इस व्याख्यान में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. अरुण कुमार अत्री, हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ. संतोष कुमार के साथ प्रो. कमलेश कुमारी भी मंच पर उपस्थित रहे। स्वागत उद्बोधन से प्रो. अत्री ने शिक्षा के महत्व तथा साहित्य की सृजनात्मकता पर महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने छात्र-छात्राओं को ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२०’ के माध्यम से बताया कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षा के साथ-साथ सृजनात्मकता का क्या महत्व होता है।

इससे पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्वलित करके किया गया। अतिथियों का स्वागत प्रतीक चिन्ह एवं पौधे से किया गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संतोष कुमार ने दिया।

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