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यत्र-तत्र-सर्वत्र

अरुण कुमार पासवान
ग्रेटर नोएडा(उत्तरप्रदेश)
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जानता हूँ,परिवर्तन
शाश्वत सत्य है प्रकृति का।

परिवर्तन न हो तो
थम जाए गति,रुक जाए सब-कुछ,
जैसे रुक जाता है साँसों का चलना
ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की
हरकत भी थम जाती है,
रुक जाने के बाद
प्राण वायु का अनवरत परिवर्तन…।

पर,अंतर होता है,और होना चाहिए
बाह्य और आंतरिक परिवर्तन में,
निसर्ग सम्पदा और मानव-स्वभाव में।
प्रकृति-जन्य परिवर्तन,
देता है जीवन चराचर जगत को
नवीनता और ऊर्जा भी,
जबकि परिवर्तन,मनुष्य की प्रकृति का
उसे देती है कठोरता अक्सर,
कुछ अपवादों को छोड़कर;
जैसे उसके परिवर्तन ने बदल दी है
उसकी सोच,कि मक़सद
कुछ और भी हुआ करते थे,
पर्व-त्योहारों के,अपनी खुशी के सिवा…।

समाज के अन्योन्याश्रय-सम्बन्ध पर,
आश्रित थे हमारे पर्व-त्योहार,
प्रकाश-पर्व दीपावली जैसे;
न कि पटाखे,धमाके के लिए,
बारूद जलाकर प्रदूषण फैलाने
और अपने घरों पर,
लगाकर सतरंगी झालर
दूसरों की हैसियत को,
मात देने के लिए…।

कुम्हार के दीए,तेली के तेल और,
खरीददार के पैसे,रोशन करते थे
तीन घर,दीपोत्सव में,
और दीए की मद्धिम रौशनी में
यह भी देख पाते थे लोग कि
कहाँ जम गया है अंधेरा,
कौन से घर वंचित हैं रौशनी से…
दीपावली में भी।

उस घर को रौशन करने पर ही
पूरा होता था उद्देश्य दीपावली का,
सार्थक होता था नाम ‘प्रकाश-पर्व’
और फसल भी मुक्त होती थी,
दिवाली के दीए की लौ में
कीट-पतंगों की आत्महत्या से…l

जगमगाती रौशनी में बैठ कर,
अंधेरे में क़ैद जिंदगी का दर्द
देेख कहाँ पाते हैं हम ?
हमारा यह परिवर्तन,
सफल कर देता है उद्देश्य
सर्वत्र-प्रकाश के निमित्त,
मनाए जाने वाले त्योहार
दीपावली का…।

क्यों न विचारें हम,
दीपावली मनाने के
संकुचित आत्म-परिवर्तन पर ?
और इस दिवाली पर,
फैलाएँ प्रकाश,यत्र-तत्र-सर्वत्रll

परिचय:अरुण कुमार पासवान का वर्तमान निवास उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोएडा एवं स्थाई बसेरा जिला-भागलपुर(बिहार)में है। इनकी जन्म तारीख १७ दिसम्बर १९५८ और जन्म स्थान-भागलपुर है। हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री पासवान ने ३ विषय में एम.ए.(इतिहास,हिंदी व अंग्रेज़ी) और विधि में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्य क्षेत्र-सहायक निदेशक, कायर्क्रम सेवा(सेवानिवृत्त-आकाशवाणी)का रहा है। कविता,कहानी,नाटक,लेख में निपुण श्री पासवान के नाम प्रकाशन में-पितृ ऋण (गद्य),अल्मोड़ा के गुलाब (काव्य संग्रह),७ सम्पादित काव्य संग्रह,३ पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित है। आप एक पत्रिका के सह-सम्पादक होने के साथ ही पोर्टल पर लेखन में सक्रिय हैं। लेखन का उद्देश्य-साहित्य सेवा और पसंदीदा हिंदी लेखक-निराला,दिनकर हैं। आपके लिए प्रेरणापुंज- दिनकर हैं। देश और हिंदी भाषा पर आपकी राय-“भारत सामाजिक समन्वय में विश्वास रखता रहा है। इसकी सांस्कृतिक विरासत का कोई सानी नहीं है। हिंदी भाषा को भारतीय संस्कृति की परिचायक और प्रतिनिधि भाषा कहना उपयुक्त होगा। सहिष्णुता हिंदी भाषा का प्रधान चरित्र है।”

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