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युग प्रेरक ग्रंथ है `महात्मायन` और `राष्ट्रमाता कस्तूरबा`

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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महात्मा गांधी के व्यक्तित्व,कृतित्व और अवदान पर आज भी लेखकों की लेखनी रूकी नहीं है,कवियों और वक्ताओं की वाणी थमी नहीं है। कर्मनिष्ठा,भावनिष्ठा और त्यागनिष्ठा को चरितार्थ कर गांधी ने एक ऐसी बडी लकीर खींची है जिसे अभी तक छोटी नहीं किया जा सका है। गांधी की कथनी और करनी में एकरूपता के साथ ही उनकी व्यावहारिक जीवनशैली आज की पीढ़ी के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है,क्योंकि वे किसी वाद या विचारधारा को लेकर नहीं चलेl अपने जीवन और व्यवहार से उन्होंने जितनी जिन्दगियां बदल दी,उसका दसवां भाग भी सदियों से चली आ रही अनेक विचारधाराओं से संभव नहीं है। इससे यह धारणा पुष्ट होती है कि सिद्धांत की तुलना में व्यावहारिक जीवन पद्धति ही अधिक कारगर है। राजनीति,राष्ट्रनीति,जननीति को सहजता और दृढ़ता के साथ स्पष्ट करता गांधी का व्यक्तित्व एक ऐसा दीप स्तम्भ बना हुआ है,जिसके आलोक में आने वाली कई सदियों तक सत्य को परिभाषित होते हुए देखा जा सकता है।

१५० वें जन्मशती वर्ष में वरिष्ठ कवि-शिक्षाविद् डॉ. देवेन्द्र जोशी द्वारा गांधी जी के समग्र व्यक्तित्व पर रचित महाकाव्य महात्मायन और कस्तूरबा गांधी के जीवन पर केन्द्रित कृति राष्ट्रमाता कस्तूरबा के माध्यम से दोनों को याद किया गया है और उन्होंने अपनी निश्छल वैचारिकता के साथ उस दोनों को भाव सुमन अर्पित किए है।

मोहनदास के महात्मा गांधी बनने और प्रकारान्तर से राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार किये जाने की संघर्षपूर्ण गाथा को डॉ. जोशी ने महात्मायन में गांधी जी के जीवन को २८ प्रसंगों से व्यक्त किया है। इसमें उनके पूर्वज,बचपन,शिक्षा,विलायत प्रवास सहित रंगभेद संघर्ष, भारत छोड़ो आन्दोलन आदि प्रसंग प्रमुख हैं। यह महाकाव्य नई पीढ़ी को ध्यान में रखकर सहज-सरल भाषा में चतुष्पदी में लिखा गया है। आज के डिजिटलाइजेशन और इन्टरनेट के युग में गांधी जी से दूर होती जा रही नई पीढ़ी में महात्मा गांधी के प्रति कविताओं के जरिए रूचि जगाने का रचनाकार का अच्छा प्रयास है।

कस्तूरबा के बिना गांधी की कल्पना नहीं की जा सकती। अगर कस्तूरबा न होती तो गांधी राष्ट्रपिता और महात्मा नहीं बन पाते। यह वर्ष कस्तूरबा का भी १५० वें जयंती का वर्ष है। डॉ. जोशी ने पुस्तक राष्ट्रमाता कस्तूरबा के रूप में एक शोध ग्रंथ समाज के सामने रखा है। यह पुस्तक कस्तूरबा और महात्मा गांधी के जीवन के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है। डॉ. जोशी ने शोध ग्रंथ के २५ अध्यायों में कस्तूरबा गांधी के जीवन की सम्पूर्ण दास्तान संजोई है। पत्नी,माँ,स्वतंत्रता सेनानी,जेल कैदी,बालिका वधू और पति की छाया आदि रूपों में कस्तूरबा गांधी की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। हर सफल पुरूष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है। गांधी जी की सफलता में वह हाथ कस्तूरबा का ही था। गांधी जी हठी,सिद्धांतवादी और जिद्दी व्यक्ति थे। इस कारण कस्तूरबा को उनके अनेक अत्याचार झेलने पड़े। एकाधिक बार गांधी जी ने कस्तूरबा को घर से बाहर निकाला। फिर भी पतिव्रता कस्तूरबा ने अंत तक गांधी जी का साथ नहीं छोड़ा। वे परिवार,समाज और राष्ट्र के साथ ही गांधी जी की हर कसौटी पर खरी उतरी।

गांधी जी ने खुद अपनी आत्मकथा में लिखा है कि-“यदि कस्तूरबा ने न सम्हाला होता तो राष्ट्रपिता और महात्मा बनना तो दूर,मैं पूरी उम्र जिन्दा भी नहीं रह पाता और समय से पहले ही मर जाता।” ग्रंथ में उल्लेखित है कि कस्तूरबा महात्मा गांधी से ६ माह बड़ी थी। उनका गांधी जी के साथ बाल विवाह हुआ था। उस समय लड़कियों को शाला नहीं भेजा जाता था। इस कारण कस्तूरबा निरक्षर थी,लेकिन गांधी जी के साथ रहकर उन्होंने लिखना-पढ़ना सीख लिया था। गांधी जी और वे जब जेल में होते थे एक-दूसरे से पत्र व्यवहार करते थे। बाद में वे भी आजादी के आन्दोलन में कूद पडी और कई बार जेल गई। उनकी मृत्यु पूणे के आगा खां महल स्थित जेल में २२ फरवरी १९४४ को हुई थी। वैचारिक मतभेद के बावजूद सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। कस्तूरबा की मृत्यु पर नेताजी ने महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में उनकी मृत्यु को राष्ट्र के लिए बलिदान बताते हुए उन्हें राष्ट्र माता कहा था,जिसका उल्लेख इस कृति में है। कस्तूरबा गांधी पर मौलिक और प्रामाणिक जानकारी संकलन के लिए लेखक ने १० राज्यों की हजारों किलोमीटर की यात्रा कर अत्यंत परिश्रमपूवक जुटाई जानकारी के आधार पर कस्तूरबा गांधी के जीवन ने अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर किया है। चूंकि कस्तूरबा गांधी पर बहुत कम लिखा गया है,इसलिए लेखक का यह प्रयास उपयोगी एवं जानकारीवर्धक है। यह सच है कि महात्मा गांधी पर विश्वभर में जितना साहित्य रचा गया उसकी तुलना में कस्तूरबा पर बहुत कम लिखा गया,जबकि कस्तूरबा ने गांधी जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की जंग लड़ी थी। कस्तूरबा के इसी संघर्ष को पुस्तक में सामने लाने की कोशिश लेखक ने की है।

निरंतर अहिंसक और अराजक होते समाज में साहित्य और कला की नगरी उज्जैन से १५० वें जयंती वर्ष में बापू और बा को सच्चे अर्थों में ये रचनात्मक काव्यांजलि है। डॉ. जोशी की यह दोनों कृतियां सदैव जन-जन को प्रेरित करती रहेंगीl इन दोनों धरोहरों को समाज के सामने लाने के लिए डॉ. जोशी बधाई के पात्र हैं।

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