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युवाओं और शिक्षकों को जोड़ने की जरुरत-अनिल शर्मा जोशी

संगोष्ठी:भारत के पड़ोसी देशों में हिंदी…

हैदराबाद(तेलंगाना)।

भारत के पड़ोसी देश नेपाल, भूटान,श्रीलंका,म्याँमार,अफगानिस्तान में हिंदी भाषा का शिक्षण और प्रचलन न केवल हमारे संबंधों को मजबूत बनाता है,बल्कि आत्मीयता और घनिष्टता भी प्रदान करता है। इन देशों में युवाओं और शिक्षकों को जोड़कर भाषा और संस्कृति के लिए ऐसी नीति तैयार करनी चाहिए जिससे भाषा का संवर्द्धन तो हो ही,राजनयिक संबंध अच्छे हों।
यह बात केन्द्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने केन्द्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा आयोजित आभासी संगोष्ठी का समाहार करते हुए कही। संगोष्ठी का विषय ‘भारत के पड़ोसी देशों में हिंदी’ था।
श्री जोशी ने संगोष्ठी में सभी अतिथि वक्ताओं के अनुभवों को महत्‍वपूर्ण बताया। श्री जोशी ने भारत में अभियांत्रिकी व चिकित्सा की पढ़ाई हिंदी भाषा में शुरू किए जाने पर हर हर्ष प्रकट किया। प्रारंभ में संस्थान(हैदराबाद केन्द्र)के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे ने अतिथि स्वागत किया तथा परिचय दिया।
संगोष्ठी का विषय परिवर्तन करते हुए संस्थान की निदेशक प्रो. बीना शर्मा ने कहा कि भाषा एक व्यवहार है जिसका मूल लक्ष्य संप्रेषण है। संस्थान ने जो हिंदी के पुष्प उगाए,अब वे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में खुशबू बिखेर रहे हैं।
अफगानिस्तान के हिंदी विद्यार्थी मो.फहीम,श्रीलंका में हिंदी की आचार्य सुभाषिणी रत्नायक तथा म्याँमार की सुदीमा इंटरनेशनल की शाखा प्रबंधक आशा कुमारी गुप्ता ने अपने-अपने देश में हिंदी की वर्तमान स्थिति पर चर्चा की।
फहीम ने बताया कि अफगानिस्तान में वर्ष २००६ में हिंदी पठन-पाठन का सिलसिला शुरू हुआ। अब वहॉं ४० छात्र हर साल हिंदी पढ़ रहे हैं। म्याँमार में हिंदी के लिए वर्तमान में चिंतामणि वर्मा के योगदान की चर्चा करते हुए आशा कुमारी गुप्ता ने बताया कि,आज वहॉं ११४ छात्र गुरूकुल की तरह विद्यालय में रहकर हिंदी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। पूर्व छात्रा सुभाषिणी ने बताया कि श्रीलंका सरकार के १७ विश्वविद्यालयों में से १२ में हिंदी पढ़ाई जाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक भाषा के रूप में श्रीलंका में हिंदी पूरी तरह महफूज है। भूटान में हिंदी सेवी की पहचान रखने वाली अर्चना ठाकुर ने कहा कि भूटान के लागों के मन में हिंदी के लिए बड़ा सम्मान है। बांग्लादेश से जुड़े चित्रकूट मूल के संगम लाल जी ने कहा कि बांग्लादेश में व्यापारिक और बोलचाल की भाषा हिंदी ही है।
त्रिभुवन विवि( काठमांडू,नेपाल) की विभागाध्यक्ष संगीता वर्मा ने कहा कि नेपाल में हिंदी की जड़ें बहुत मजबूत हैं किंतु राजनीतिक विरोध के कारण शैक्षणिक स्थिति कमजोर है। भारत सरकार से सहयोग की अपील करते हुए उन्‍होंने कहा कि, सरकार को भी नेपाल जाकर पढ़ने वालों को छात्रवृत्ति देने पर विचार करना चाहिए।
परिषद के मानद निदेशक नारायण कुमार ने कहा कि हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए सभी हिंदी सेवियों को तन्मयता से काम करना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रसिद्ध भाषा‍कर्मी राहुल देव ने पड़ोसी देशों में हिंदी के प्रति भाव,अनुराग,सेवा, जुनून के साथ-साथ टीस के अनुभव को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आखिर भारत में हिंदी के प्रति ऐसा भाव कब आएगा। संयोजन जवाहर कनार्वट व संध्या सिंह ने किया। संचालन सत्येन्द्र दहिया ने किया। परिवार के संयोजक पदमेश गुप्त ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।

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