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रक्त की कीमत

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन(हिमाचल प्रदेश)
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जुम्मन मियां की गिनती शहर के बड़े रईसों में होती थी। बड़ा कारोबार है उनका। समाज में अच्छा नाम है, रूतबा है, पर उनकी एक ही कमी थी कि वो अपनी कौम से ज्यादा प्यार करते थे, अन्य समुदायों को वह नीचा समझते थे। किसी से भी वह उचित व्यवहार नहीं करते थे। उनकी दृष्टि में अन्य समाज तुच्छ थे। वे किसी से व्यवहार नहीं रखना चाहते थे।
एक दिन अचानक जुम्मन मियां की पत्नी शबीना दुर्घटना में घायल हो गई।ढेर सारा खून बह गया। डॉक्टर ने तुरंत ही खून चढ़ाने की बात की। जब उनकी पत्नी का रक्त समूह जांचा गया तो वह ‘ओ निगेटिव’ था। इस समूह का रक्त बहुत कम लोगों में पाया जाता है। बहुत खोज करने के बाद ज्ञात हुआ कि रामकुमार का रक्त भी ‘ओ निगेटिव’ है। यह वही रामकुमार था, जिसे जुम्मन मियां ने कुछ समय पहले अपमानित किया था। इसके बावजूद भी वह रक्त देने के लिए तैयार हो गया।
जुम्मन मियां के पास पत्नी को बचाने के लिए रामकुमार का रक्त लेने के अलावा अब कोई विकल्प न था। रामकुमार का रक्त चढ़ाने के बाद जुम्मन मियां की पत्नी खतरे से बाहर आ गई।
अब जुम्मन मियां शर्म से गढ़े जा रहे थे। उन्हें अपनी सोच पर पछतावा हो रहा था। अब उनकी समझ में आ गया था कि हर कौम में अच्छे और खराब दोनों प्रकार के लोग रहते हैं। कुछ लोगों की गलती की वजह से पूरी कौम बदनाम होती है। रक्त तो रक्त होता है, वह किसी भी समुदाय में भेद नहीं करता है। हम कभी भी रक्त बैंक में रक्त लेते वक्त यह नहीं पूछते कि रक्त हिंदू का है, या मुसलमान का।
जुम्मन मियां की आँखों में पछतावे के आँसू थे। उन्होंने रामकुमार को गले लगा लिया और अपने किए की माफी मांगी। अब जुम्मन मियां रक्त की कीमत समझ चुके थे।

परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी(हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस.,एम.ए.,एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका,व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह)प्रकाशित है। आपको राजस्थान द्वारा ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष(सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”

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