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रातों को जगाकर

डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
मनेन्द्रगढ़ (छत्तीसगढ़)
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यादें तंग करती है,
रातों को जगाकर
धीमे से आकर,
कुछ पल खट्टे-मीठे
पलकों के नीचे,
आँखों को भीचें
यादें तंग करती है।

मुड़कर देखा तो,
बचपन के साथी
छुपा-छुपी खेले,
पेड़ों के नीचे
स्कूल के पीछे,
यादें तंग करती है।

यादें मदमस्त जवानी,
जैसे बहता हुआ पानी
रहे जोश में रवानी,
बने हरदम तूफानी
बस दिल की ही मानी,
यादें तंग करती है।

यादों की बारात अधेड़ अवस्था,’
ढेर सारे अनुभव और तजुर्बा
ऊंचे-नीचे रास्तों पर चल,
कहें संघर्ष और परिश्रम की दास्ताँ
करवा देता है जिंदगी से वास्ता,_
यादें तंग करती है।

यादें जब वृद्धावस्था,
गोल घूम जाती है सारी अवस्था
वो मासूम बचपन, अल्हड़ जवानी,
जिम्मेदारियों से भरी अधेड़ उम्र
जिंदगी जैसे ठहर-सी जाती है,
ये लंबी बीमारी,
वो इंतज़ार की घड़ियाँ।
तब बोझिल सी लगे,
हर एक साँस की लड़ियाँ,
यादें तंग करती है॥

परिचय- शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक (अंग्रेजी) के रूप में कार्यरत डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती वर्तमान में छतीसगढ़ राज्य के मनेन्द्रगढ़ में निवासरत हैं। आपने प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर एवं माध्यमिक शिक्षा भोपाल से प्राप्त की है। भोपाल से ही स्नातक और रायपुर से स्नातकोत्तर करके गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (बिलासपुर) से पीएच-डी. की उपाधि पाई है। अंग्रेजी साहित्य में लिखने वाले भारतीय लेखकों पर डाॅ. चक्रवर्ती ने विशेष रूप से शोध पत्र लिखे व अध्ययन किया है। २०१५ से अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय (बिलासपुर) में अनुसंधान पर्यवेक्षक के रूप में कार्यरत हैं। ४ शोधकर्ता इनके मार्गदर्शन में कार्य कर रहे हैं। करीब ३४ वर्ष से शिक्षा कार्य से जुडी डॉ. चक्रवर्ती के शोध-पत्र (अनेक विषय) एवं लेख अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय पत्रिकाओं और पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं। आपकी रुचि का क्षेत्र-हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला में कविता लेखन, पाठ, लघु कहानी लेखन, मूल उद्धरण लिखना, कहानी सुनाना है। विविध कलाओं में पारंगत डॉ. चक्रवर्ती शैक्षणिक गतिविधियों के लिए कई संस्थाओं में सक्रिय सदस्य हैं तो सामाजिक गतिविधियों के लिए रोटरी इंटरनेशनल आदि में सक्रिय सदस्य हैं।

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