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रात ढल चुकी

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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झाँक रही हूँ खिड़की से नीलगगन,
कहाँ हो चन्द्रमा, कहाँ हो गए मगन
सच बताओ चन्द्रमा, क्या है इरादा ?
लगता है भूल गए हो अपना वादा।

रात ढल चुकी, अब कब आओगे,
इन्तजार कराके, मुझे तड़पाओगे
क्यों खोए रहते, चाँदनी के प्यार में,
मैं भी जगी हूँ, तुम्हारे इन्तजार में।

ओ चाँद, कब तक मुझे जगाओगे!
‘देवन्ती’ को, कब आकर सुलाओगे
आओ प्यारे चन्द्रमा, जाना मिल के,
कर लो दो-चार बातें, चुपके-चुपके।

प्रेम प्रीत प्यार की ग़ज़ल सुना दो,
कितना प्यार करते हो, ओ बता दो।
इन्तजार करके अब मैं थक चुकी,
देख लो चन्द्रमा, रात भी ढल चुकी॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |

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