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रिश्तों की गरिमा क्यों खो रही है ?

राजकुमार जैन ‘राजन’
आकोला (राजस्थान)
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रिश्ते या सम्बन्ध भारतीय जीवन के केन्द्र में रहे हैं,और लोग उन्हीं को जीने में अपना जीवन मानते रहे हैं। रिश्तों का बंधन बड़ा सुहावना लगता है,और हमारा इतिहास,संस्कृति और संस्कार इस बात के गवाह हैं कि,हम रिश्तों के ख़ातिर सब-कुछ दांव पर लगा देते थे।
एक जमाना था जब धर्म के बने भाई-बहन जीवनभर रिश्तों को निभाते थे। किसी को भाई कह देने भर से लड़की अपने आपको सुरक्षित महसूस करती थी। लोग भी बहू-बेटियों की इज्जत करना अपना धर्म समझते थे। एक की बेटी सारे गाँव की बेटी होती थी, लेकिन आज सारे रिश्ते पानी के बुलबुले जैसे हो गए हैं। हों भी क्यों नहीं,जब एक बाप अपनी बेटी के सिर पर हाथ रखने की अपेक्षा उसे अपनी हवस का शिकार बना लें। एक भाई के हाथों बेटी-बहन की इज्जत लूट ली जाए।
भारतीय समाज आज एक चुनौती भरे बदलाव के दौर से गुजर रहा है। व्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे बढ़ रहे हैं,और समाज की चिंता सिकुड़ती जा रही है। पिछले दिनों भारत में बहन-बेटियों के साथ हुई घटनाएं झकझोर कर रख देने वाली है। हर घटना में प्रचार की मानसिकता के चलते बन्द,आंदोलन तो होते हैं,पर परिणाम ?? वही शून्य!! फिर कहीं न कहीं दुष्कर्म की घटनाओं की पुनरावृत्ति! इन जघन्य अपराधों की सज़ा या निर्णय करने में भी अदालतों को वर्षों लग जाते हैं।
दोषियों को ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए कि,दूसरी बार अपराध करने की किसी की हिम्मत ही न हो। ऐसी स्थिति में आखिर एक बेटी,एक औरत किस पर विश्वास करे ? क्या कर्तव्य,संवेदना, भावना,स्नेह जैसे शब्द किताबों तक नहीं सीमित रह गए हैं ? क्या रिश्तों की गरिमा कहीं खो गई हैं ??
नारी की कोख से जन्म लेकर पुरुष प्रायः उसके प्रति निष्ठावान नहीं रहते हैं। कहते हैं कि आदमी से ज्यादा बुद्धिमान औऱ खूंखार प्राणी इस धरती पर कोई नहीं है;तभी तो खतरनाक जानवर भी उसके सामने दुम हिलाते हैं और उसके इशारे पर नाचते हैं,लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब आदमी के अंदर जानवर की प्रवृत्ति पनपने लगती है और वह सामाजिक मर्यादाओं,रिश्तों की गरिमा, संवेदनशीलता,मूल्यों,आदर्शों आदि सबको ताक पर रख देता है। बाप,भाई,शिक्षक,देवर,जेठ आदि प्रायः सभी रिश्ते कलंकित होते दिखाई देने लगे हैं।
समाज की नींव हिलाने वाले ऐसे हादसों से जीवन में कटुता और असुरक्षा की भावना ही आती है,क्योंकि इसके बाद हर एक को सन्देह की नज़र से देखा जाने लगता है। आज हम नारी उत्थान की बातें करते हैं। निर्णय लेने वाली हर संस्था तथा कानून बनाने वाली संसद में उसे आरक्षण दिलाने को संघर्ष भी करते हैं,और दूसरी तरफ उसके प्रति बढ़ रहे अपराध महिला के मन में भय व दहशत पैदा कर रहे हैं।
बौद्धिक दृष्टि से सक्रिय और भावनात्मक रूप से उथल-पुथल से गुजरते हुए बेटियाँ आज एक जटिल माहौल में जी रही हैं। मीडिया और सूचना क्रांति उनके सामने फैशन,रोजगार,सेक्स और मनोरंजन के नित-नये रूप परोस रहे हैं तो पुरुष वर्ग भी साइबर दुनिया के अश्लील,विकृत मकड़जाल में उलझ कर एक ऐसी घिनौनी मानसिकता के शिकार होते जा रहे हैं,जिनके परिणाम स्वरूप ऐसी घटनाएं आम होती जा रही हैं।
कुछ विद्वान मानते हैं कि बलात्कार या उसके बाद महिला या अबोध बच्ची की हत्या के मामले में अपराधी प्रायः छूट जाता है और अगर चिन्हित कर भी लिया जाता है तो भ्रष्टाचार की मार से गवाह कमजोर किये जाने लगते हैंl फिर अदालत के झूठ-सच की खिचड़ी तथा वकीलों की आपसी साठ-गांठ न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर जाती है। पिछले कुछ समय से महिलाओं ने अपने प्रति हो रही हिंसा, बलात्कार की घटनाओं के विरुद्ध बोलना शुरू किया है। यह अच्छा-सा संकेत है। दूसरा पहलू यह भी है कि,कहीं कहीं महिलाएं भी इस प्रकार की घटनाओं के लिए स्वयं जिम्मेवार बन जाती है,जो स्वतंत्रता को स्वछंदता समझने की भूल कर रही होती है। ऐसी घटनाओं को राजनीतिक रंग दिए जाने से भी बचना होगा।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए ढेर सारे कानून हैं,फिर भी उनके प्रति बढ़ रहे अपराधों का सिलसिला खत्म नहीं होता। न्याय पालिका को नज़रिया बदलना चाहिए। सरकार को कानून में संशोधन कर इन्हें सख्त बनाना चाहिए। बलात्कार के मामले में त्वरित सुनवाई हो और एक ही दंड हो-मृत्यु दंड। तब जाकर अपराधियों के मन में कानून का ख़ौफ पैदा होगा। महिलाओं को अपनी सुरक्षा और स्वाभिमान के लिए सामूहिक रूप से पूरजोर आवाज़ उठानी चाहिए। केवल नारेबाजी,जुलूस,मोमबत्ती जलाने से इस देश में कुछ होने वाला नहीं है।

परिचय-राजकुमार जैन का उपनाम ‘राजन’ है। आकोला(राजस्थान)में २४ जून को जन्में श्री जैन की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी)है। लेखन विधा-कहानी, कविता है,जिसमें पर्यटन,लोक जीवन एवं बाल साहित्य प्रमुख है। आपका निवास आकोला में है। आपकी अनेक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है, जिसमें-‘नेक हंस’ और ‘लाख टके की बात’ आदि प्रमुख है। हिन्दी सहित राजस्थानी, अंग्रेजी में भी बाल साहित्य की इनकी ३६ पुस्तकों का प्रकाशन हों चुका है,तो हिंदी बाल कहानियों का मराठी अनुवाद २० पुस्तकों में प्रकाशित हों गया है। विशेष रुप से ‘खोजना होगा अमृत कलश’ (कविता संग्रह) पंजाबी,मराठी,गुजराती सहित नेपाली एवं सिंहली में अनुदित होकर श्रीलंका से प्रकाशित हुआ है। पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित करा चुके श्री जैन की रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी व दूरदर्शन सहित विभिन्न चैनल्स से हो चुका है। आपने सम्पादन के क्षेत्र में ‘रॉकेट'(बाल मासिक),’श्रमनस्वर’,’टाबर टोली’ एवं ‘हिमालिनी'(नेपाल)पत्रिकाओं को सहयोग दिया है। ‘राजन’ नाम से प्रसिद्ध बाल रचनाकार कईं मासिक पत्रिकाओं के सम्पादक रह चुके हैं। अनुवाद के निमित्त- ‘सबसे अच्छा उपहार’ बाल कहानी संग्रह पंजाबी,मराठी,उड़िया,गुजराती और अंग्रेजी में अनुदित हुआ है। हिन्दी बाल साहित्य की उत्कृष्ट पुस्तक पर संस्थापक के रुप में आप प्रति वर्ष अखिल भारतीय स्तर पर २१ हजार रूपए का ‘पं. सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार’(११ वर्ष से सतत) और ५ हजार राशि के सम्मान देते हैं। ‘राजकुमार जैन राजन फाउण्डेशन’ की स्थापना करने के साथ ही आप साहित्य,शिक्षा,सेवा एवं चिकित्सा में निरन्तर सक्रिय हैं। आपको प्रमुख पुरस्कार और सम्मान में उदयपुर से ‘राजसिंह अवार्ड’ (२ बार),’शकुन्तला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार’,राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (राज. सरकार),‘जवाहर लाल नेहरू राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार’,गिरिराज शर्मा स्मृति सम्मान,जयपुर द्वारा ‘समाज रत्न-२०१६’ और भारत-नेपाल मैत्री संघ द्वारा साहित्य सेतु सम्मान-२०१८ सहित १०१ से अधिक पुरस्कार-सम्मान प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। श्री जैन ने विदेश यात्रा में अमेरिका,कनाडा, मॉरीशस,मलेशिया,थाईलेंड,श्रीलंका और नेपाल आदि का भ्रमण किया है। आप विशेष रुप से हिन्दी के प्रचार-प्रसार सहित बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन करते हैं।

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