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रेत की कृति

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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समुद्र तट पर बालूका राशि से,
बनी ये सुंदर-सी अनोखी कृति
इसे देख सबके मन में आती है,
एक सुंदर एवं प्यारी-सी स्मृति।

पालनहार अपने हाथ में उठाए,
एक पालनहार की सुंदर सृष्टि
फिर बालू में ही मिल जाना है,
यदि आ जाए वहाँ कभी वृष्टि।

जैसे बढ़ता है समुद्र का पानी,
वैसे बच्चे पर आती है जवानी
सृष्टि का नियम यही सदियों से,
ज्वार भाटा की है यही कहानी।

मिट्टी से तुम चाहे जो भी बनाओ,
वैसे बच्चे को तुम जो भी बनाओ
इसे संभाल कर रखना है हमको,
सब मिल इसे एक इंसान बनाओ।

ये मानव क्या नहीं कर सकता है!
इसमें प्राण क्या वो डाल सकता है!
‘दीनेश’ यही तो एक चीज बाकी,
जो मानव अभी नहीं कर सकता है॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।