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लड़ते रहे शान्ति की लड़ाई

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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देदी हमें आजादी वो गुजरात का था लाल,
लाठी-लंगोटी वाले ने ये कर दिया कमाल।

खायी थी कितनी लाठियाँ और जेल भी गये,
अरमान दिल के फिर भी मिटने नहीं दिये।

किया असहयोग आंदोलन,नमक बना दिया,
अंग्रेजों भारत छोड़ दो ये नारा सही दिया।

हर काम में अंग्रेजों के अड़ँगा लगा दिया,
आखिर में अंग्रेजों को भारत से भगा दिया।

बापू ने अपनी राह अहिंसा की बनायी,
लड़ते रहे थे अंत तक शान्ति की लड़ाई।

इधर पटेल,गाँधी थे और था जवाहरलाल,
उधर सुभाष ने भी मचा रक्खा था धमाल।

क्रांतिकारियों ने मिल बवाल मचा दिया,
कितने ही अंग्रेजों को ठिकाने लगा दिया।

मुझको दो अपना खून दूँगा तुमको आजादी,
लोगों के दिलों में थी ऐसी आग लगा दी।

गाँधी थे नरम दिल के और बाकी थे गरम दल,
इधर अहिंसा बल था,उधर क्रांति की हलचल।

बापू ने छुआ-छूत का भी भेद मिटाया़,
बीमार रोगियों को गले से था लगाया।

फिरंगियों को गाँधी का ये कर्म न भाया,
उनको पकड़ के यरवदा की जेल भिजवाया।

बापू की जयन्ती है सभी मिल के मनाएँ,
चरणों में उनके श्रद्धा से हम फूल चढ़ाएँll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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