हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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मृदुल-मनोहर मोम-सी काया,
आकर गोद में मेरी खेलेगी
स्वर्णिम-स्वप्निल उम्मीदें मेरी,
कोमल हाथों से ठेलेगी।
चूमेगी और अलिंगेगी वह,
माथा-गला मेरा निज कोमलांगों से
बाग-बाग कर डालेगी घरौंदा मेरा,
निज कोमल तोतली बांगों से।
कोमल गाती लाडली मेरी,
मेरे घर में चिड़िया-सी चहकेगी
मेरे आँगन की कांति उससे,
पावन तुलसी-सी महकेगी।
वह सपना था और सपना रहेगा,
हुआ पूरा न चाह कर भी
लाडो की उम्मीद थी होने की,
लाड़ले ने थी दस्तक दी।
थाल पीटती दादी-माएं,
अभागा बाप अर्धोल्लासित मौन था
बधाई हो! फिर से बेटा हुआ, मुहल्ला कहता,
सामाजिक सोच में पिता गौंण था।
सोचा था लाडो आएगी
मेरे गालों को, नन्हें हाथों से सहलाएगी।
मैं खुद सँवारूँगा बाल तब उसके,
माँ जब उसके केश नहलाएगी।
सोचा सपना चूर हुआ,
कुदरत के आगे, मति का भ्रम भी दूर हुआ
उसकी मंजूरी के आगे,
कुछ न घटा, न ही कोई मशहूर हुआ।
दिल की थी जो, दिल मांझ रही,
न लाडो हुई, न सपना हुआ साकार
लाड़ले को बिठा गोदी में आज,
करता हूँ लाडो का सा ही प्यार।
सोचता हूँ अब बहू को,
बेटी बनाकर लाऊंगा
उसकी खुशी में जी कर खुद को,
पिता-पुत्री के सुख को पाऊंगा।
फिर से होती है खिन्न आत्मा,
यह भी तो नामुमकिन है
कुदरत की मर्जी, बहू के संस्कार,
और समाज नाम का जिन है।
पोती से खेलूंगा, फिर से सपना,
ये दुनिया ही निराली और अनूठी है।
कपोल कल्पित कोमल भावनाएं,
संसार पटल की झूठी है॥