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लिखा जा रहा अब नेपथ्य के पीछे का सच

डॉ.अनुज प्रभात
अररिया ( बिहार )
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देखा था बहुतों ने,
पर आँखें
करके रखी थी बंद
सुना भी बहुतों ने,
पर जुबां रखी थी
सिली-सिली
वह कौन सा भय था!
जो लाखों के दर्द को,
नेपथ्य के पीछे
रोता छोड़ दिया।

देश आजाद था,
पर आजादी
अलग-अलग थी
सरकारें यहाँ-वहाँ,
दोनों जगहों पर थी
फिर भी थी चुप्पी,
अखबार भी रोज आते थे
पर उसमें भी नहीं थे शब्द,
उन चीखने वालों की
जिनकी जानें तो जाती ही थी,
अस्मत भी लूट ली जाती थी
माँ-बाप और बच्चों के सामने।

आज खुलासा हुआ है,
वर्षों बाद एक सच का
जो कभी नेपथ्य के पीछे था,
तो आँखें छलक आई है
और लोग,
उस काल के कारण को
खोद रहे हैं कि,
क्यों गूंगा बने थे तब।

इतिहास बनता है,
या रचा जाता है
यह पूछना
अब जरुरी नहीं,
जरूरी है
अब यह जानना कि,
कैसे छुपा लिया गया
इतिहास को और,
कैसे बोल दिया गया झूठ
नेपथ्य के पर्दे के आगे।

सच खुलता है,
कोई न कोई आता है
सच खोलने,
फिर बारिश होती है
और उस बारिश में,
जमी हुई धूल की परतें
साफ होने लगती है तो,
कोशिश भी शुरू हो जाती है
कि, कैसे सच के कैनवास पर
ब्रश चला चला कर,
साफ निखर आए
‘दाग’ के धब्बे को,
ढक दिया जाए।

वक़्त बदलता है तो,
नया इतिहास भी
लिखा जा रहा है,
‘सच का इतिहास’
जो आया वर्षों बाद
देश के सामने।
नेपथ्य के पीछे,
छिपा दिए गए
सच का इतिहास॥

परिचय-एम.ए. (समाज शास्त्र), बी.टी.टी. शिक्षित और साहित्यालंकार सहित विद्यावाचस्पति व विद्यासागर (मानद उपाधि) से अलंकृत राम कुमार सिंह साहित्यिक नाम डॉ. अनुज प्रभात से जाने जाते हैं। १ अप्रैल १९५४ को अंचल नरपतगंज (अररिया, बिहार) में जन्मे व वर्तमान में अररिया स्थित फारबिसगंज में रहते हैं। आपको हिंदी, अंग्रेजी, मैथिली सहित संस्कृत व भोजपुरी का भी भाषा ज्ञान है। बिहार वासी डॉ. प्रभात सेवानिवृत्त (शिक्षा विभाग, बिहार सरकार) होकर सामाजिक गतिविधि में फणीश्वरनाथ रेणु समृति पुंज (संगठन) के संस्थापक सचिव और अन्य संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं। स्क्रीन राइटर एसोसिएशन (मुम्बई) के सदस्य राम कुमार सिंह की लेखन विधा-कहानी, कविता, गज़ल, आलेख, संस्मरण है तो पुस्तक समीक्षा एवं पटकथा लेखक भी हैं। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘बूढ़ी आँखों का दर्द’ (कहानी संग्रह), ‘नीलपाखी’ (कहानी संग्रह), ‘आधे-अधूरे स्वप्न’, ‘किसी गाँव में कितनी बार…कब तक ? (कविता संग्रह) सहित ‘समय का चक्र’ (लघुकथा संग्रह) दर्ज है तो मराठी में अनुवाद (बूढ़ी आँखों का दर्द)भी हुआ है। ऐसे ही कुछ पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं। अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो दलित साहित्य अकादमी (दिल्ली) से बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर नेशनल फेलोशिप (२००८), रेणु सम्मान (बिहार सरकार), साहित्य प्रभा विद्याभूषण सम्मान (देहरादून) और साहित्य श्री (छग), साहित्य सिंधु (भोपाल) आदि सम्मान प्राप्त हुए हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य व हिन्दी भाषा के प्रति भारतीय युवाओं को जागरूक करना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक फणीश्वरनाथ रेणु, बाबा नागार्जुन, मुंशी प्रेमचंद, हिमांशु जोशी और प्रेम जनमेजय हैं। माता-पिता को प्रेरणा पुंज मानने वाले डॉ. अनुज प्रभात का जीवन लक्ष्य साहित्य व मानव सेवा है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-“देश के प्रति हम सभी समर्पित होते हैं, किन्तु देश के विकास के लिए भाषा का विकास आवश्यक है। हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी है और हम उसके प्रति न संवेदनशील हैं और न ही जागरूक। आज निःशुल्क टोल नम्बर पर भी यही बोला जाता है-‘अंग्रेजी के लिए १ दबाएं, हिन्दी के लिए २ दबाएं…।’ हिन्दी के लिए १ दबाएं क्यों नहीं ? बात छोटी है…, पर हमें ध्यान देना चाहिए।”