कुल पृष्ठ दर्शन : 507

योग,केला और भाला…

जितेन्द्र वेद 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
*************************************************************
निशांत बार-बार सोच रहा था,पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि एक केले से देश का कौन-सा बड़ा नुकसान हो गया कि बात को इतना तूल दिया रहा था। एक अदद केला कुछ समय के लिए भूख मिटा सकता है। खड़े रहने की क्षमता दे सकता…और..कुछ पल के लिए ही सही पेट भर गया का अहसास करा सकता है। जब शाला के जमाने में परीक्षा देने जाया करते थे,तब मम्मी दही-केला खाकर जाने की समझाइश देती थी,शायद इसीलिए कि पेट भरा होगा तो प्रश्न-पत्र अच्छी तरह से होगा। शकुन तो केवल बहाना होता होगा,पर यहाँ इसी अदद केले ने तूफान ला दिया,जिसके जल्दी थमने की संभावना न के बराबर है।
अन्यथा छह बजे उठकर,दूर जाकर नौकरी करना कोई आसान काम तो नहीं है। फिर जब विदेशी मुल्क के पैसे पर समोसे,रस और केले का मजा लें और जिनके धन से यह सब आया है,वे टुकुर-टुकुर देखते रहें। इस उम्मीद में कि मेरा नम्बर भी आयेगा। वे तो मजे ले रहे थे। समोसे के पहले रस तो समोसे के बाद फिर रस। फिर वेटर ट्रे लेकर आ जाएँ तो एक और उदरस्थ….। रस की कितनी बोतलें खाली हुई,किसी को भी नहीं पता,जब बिल आएगा,तब पता चलेगा। और वो भी शायद नहीं,क्योंकि बिल में किसका कितना है,इस पर निर्भर करता है,बिल का हिसाब। सब भाड़ में जाएं,देश लूटने के लिए सब बैठे हैं,पर मेरे केले पर इतना बखेड़ा खड़ा करने की क्या जरूरत थी।
वह करता भी क्या। सब सिर पर बैठे रहते हैं। एंबेसेडर-डायरेक्टर,बाबू आदि…आदि। काम करो,पर भूख की बात मत करो। भारत से आकर विदेश में नौकरी करने के जितने फायदे हैं,उससे ज्यादा नुकसान। वहाँ पर सब अपने वाले होते हैं,इसलिए एक मुँह में डाल लो तो कोई कुछ नहीं कहता,पर यहाँ परदेस में अपने साथ मुल्क की इज्जत का भी ख्याल रखना पड़ता है। उसने पहले टाॅयलेट के पास जाकर चुपके से एक गिलास पानी पिया और सोचा कि भूख शांत हो गई होगी। फिर गिलास को वहीं टेबल के नीचे रख दिया ,कदापि कोई देख न लें,अन्यथा बहुत डांट पड़ेगी। इतनी जल्दी क्या थी खाने-पीने की।
वह कैसे बताएँ कि सुबह चाय बनाई थी,पर हड़बड़ाहट में ढुल गई। पेट में तो कुछ गया नहीं,उलटा सफाई में १५ मिनट लग गए। वह वापस बनाना चाहता था,पर मोबाइल पर आफिस के ड्राइवर का सन्देश था,बस दो मिनट और इस दो मिनट में बनाकर पीना नामुमकिन था। उसने जल्दी से योग वाला टी-शर्ट डाला और बाहर निकल गया। सरकारी कार कभी-कभार समय पर होती है,पर इस योग कार्यक्रम के लिए वह भी समय पर आ गई,गोया अंतरार्राष्ट्रीय योग दिवस की वजह से वह भी जापान की तरह समय पाबंद हो गई। अब यह देश कोई भारत तो है नहीं कि कहीं पर भी खड़े होकर एक कप चाय औ एक प्लेट पोहे खाकर क्षुधा को कुछ समय के लिए शांत किया जा सकता है। इस दक्षिण अमेरिकी देश में चाय का बिल्कुल रिवाज है ही नहीं,और कुछ खाना हो तो रेस्तराॅ में जाना पड़ेगा और वहाँ पर आर्डर के पूरे आधे घंटे बाद सर्व होता है। इतना समय होता है कहाँ मिशन के काम में। ट्रक में से १०-१२ टेबलें उतारकर लगाना,फिर १००-१२५ कुर्सियाँ उतारकर करीने से जमाना,फिर दरियाँ लगाना और उसके बाद कई भाषाओं की अलग-अलग किताबों को निकालकर अलग से जमाना। ये किताबें कोई पढ़े या नहीं,पर उठा-धरी हर बार करनी ही पड़ती है। इसके बाद बैनर लगाना और यदि खाली दिखो तो कोई मुफ्त में बांटी जा रही योग टी-शर्ट को बांटने में मदद करने को भी कह सकता है। इन सब काम के बाद अफसरों की चमचागिरी तो करना ही पड़ती है,अन्यथा ऐसे खायेंगे जैसे वे ही अन्नपूर्णा का किरदार निभा रहे हैं।
ऐसा नहीें है कि यहाँ ही ऐसा हो रहा है। भारत में भी चुनाव की डयूटी के दौरान छह बजे उठना पड़ता है,पर कोई न कोई चाय-पोहे ला ही देता है। फिर और कुछ न मिले तो बैग में से बिस्किट निकालकर खा सकते हैं। फिर वहाँ सब अपने हैं,इसलिए किसी से किस बात की शर्म। खाओ,पीओ और मौज करो,पर यहाँ परदेस में हर बात का टंटा।
और यहाँ मौज तो दूर,केवल कुछ घंटों के जीवन के लिए खाया गया एक केला बहुत बड़े बखेड़े का कारण बन सकता है। गोया केला न होकर लीची हो,जो ढेर सारे बच्चों की मृत्यु का सबब बन सकती है,या शायद भाला हो, जो दिल को छील सकता है। नहीं तो एक केले को लेकर इतना बतियाने की क्या जरूरत।
यकायक केला रूपान्तरित होकर भाला बन गया। उसे याद आया कि वह बचपन में अरटि पंडु यानि केला बहुत खाता थाl मराठी,कन्नड़ और तेलुगु के मिले-जुले उस इलाके में लोग उसे पांडु बा की तर्ज पर पंडु बा कहते थे। बाद में जब उसने गुलबर्गा विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व कर यूनिवर्सिटी चैम्पियनशिप में जेवेलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीता था,तब माँ ने इस जीत का श्रेय अरटि पंडु को दिया था। और तो और,इनाडु ने अपने खेल पृष्ठ पर भी पंडु बाबा कहकर जीत की खबर दी थी।
गुलबर्गा से बैंगलोर और बैंगलोर से सीआऱपीएफ का काम करते-करते वह कब प्रतिनियुक्ति पर विदेश आ गया,उसे पता ही नहीं चला। आज परदेस में केला बनाम भाला उसके दिलो-दिमाग को छलनी कर रहा है।
उसे याद आया कि,बचपन में केले खाकर वह छिलके सड़क पर फेंक देता था और उसे इस मौजा(केले) के छिलके पर फिसलकर गिरते हुए राहगीरों को देखने में बड़ा मजा आता था। आज उसे लगा कि वह उसी केले के छिलके पर इतना फिसला है कि केवल दांत बचे हैं,पर दिमाग पूरा फिसल गया है। उसने मन-ही-मन निश्चय किया कि जिस योग की वजह से उसको इतना मानसिक आघात पहुँचा है,अब वह कभी नहीं करेगा,और केला…l

परिचय-जितेन्द्र वेद की जन्मतिथि १९ अप्रैल १९६० तथा जन्म स्थान इंदौर हैl आपका वर्तमान निवास भी यहीं हैl मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले इंदौर के श्री वेद ने स्नातक की पढ़ाई की हैl कार्यक्षेत्र में आप सरकारी विद्यालय में व्याख्याता एवं हिंदी के शिक्षक(हैदराबाद) भी हैंl आप लेखन की सभी विधाओं में कार्य करते हैंl विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी ढेर सारी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैंl आपकी लेखनी का उद्देश्य भावों की अभिव्यक्ति करना हैl

Leave a Reply