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वाह री राजनीति…

राज कुमार चंद्रा ‘राज’
जान्जगीर चाम्पा(छत्तीसगढ़)

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वाह री राजनीति,गजब खेल दिखाती है,
दुश्मन को दोस्त और दोस्त को दुश्मन बनाती हैl

सत्ता का लालच,पद की चाह है,
जिधर मतलब निकले,बस उधर ही राह हैl

न किसी से वास्ता चुनाव के पहले सबके हैं,
चुनाव खत्म तो सबसे हट के हैं
पटेल,शास्त्री,को भुला दिया,भुला दिया गांधी को,
भगत सिंह किसी को याद नहीं,भुला दिया इंकलाब की आंधी कोl

यदि दिया होता किसी परिजन का बलिदान,
तभी महसूस होता इंकलाब और आज़ादी का एहसास
मिली है विरासत उन बलिदानों की करनी से,
इसलिए अब यश किये जा रहे हैं स्वयं अपने-आपl

नेतागिरी नहीं रही अब सेवा का स्रोत,
चन्द पैसों में बिकते नेता-बिकते मतदाता के वोट
किसे चिंता देश की,कौन देश का भविष्य संवारेगा ?
सब स्वार्थ में जीते,नेता कहते फिरते-बस मैं जीतूं और वो हारेगाl

हर मंच में देते भाषण लगता ऐसा है कि कभी गलत करेंगे नहीं,
जीवन जी रहे अमृत पीकर लगता है ऐसा कि कभी मरेंगे नहीं
खुद की बातों पर अमल खुद न करे,बस लोक लुभावन बातें हैं,
जिधर मतलब निकले बस उधर की खाते,बस उनकी ही गाते हैंl
वाह री राजनीति…गजब खेल दिखाती है…ll

परिचय-राज कुमार चंद्रा का साहित्यिक नाम ‘राज’ है। १ जुलाई १९८४ को गाँव काशीगढ़( जिला जांजगीर ) में जन्में हैं। आपका स्थाई पता-ग्राम और पोस्ट जैजैपुर,जिला जान्जगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अंग्रेजी और छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चंद्रा की शिक्षा-एम.ए.(राजनीति शास्त्र) और डिप्लोमा(इन विद्युत एवं कम्प्यूटर)है। कार्यक्षेत्र- लेखन,व्यवसाय और कृषि है। सामाजिक गतिविधि में सामाजिक कार्य में सक्रिय तथा रक्तदाता संस्था में संरक्षक हैं। राजनीति में रुचि रखने वाले राज कुमार चंद्रा की लेखन विधा-आलेख हैं। कई समाचार पत्रों में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जनजागरुकता है। आपके पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज-स्वामी विवेकानंद तथा अटल जी हैं। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-“भारत महान देश है। यहाँ की संस्कृति और परम्परा महान है,जो लोगों को अपनी ओर खींचती है। हिन्दी भाषा सबसे श्रेष्ठ है,ये जितनी उन्नति करेगी,देश उतना ही उन्नति करेगा।

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