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विरह श्रृंगार…

एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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सूने श्रृंगार को संवरती है
व्यथित मन में तड़पती हैं,
झंकृत तारों को छेड़ती है
विरह वेदना को सहती है।

मन की आतुरता से दूर
अधरों पर चपलता है,
विरहिन आँखों में सूने
भावों की कोमलता है।

तन शिथिल मन बोझिल,
विरह श्रृंगार से लदा है।
उदासीन हृदय तल पर,
कैसी नैराश्य की अदा है॥

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