कुल पृष्ठ दर्शन : 89

विरोध विशुद्ध राजनीतिक और स्वार्थों से प्रेरित

नवेंदु वाजपेयी
*******************************************************************

शिक्षा नीति २०१९ के प्रारुप पर भाषा को लेकर बवाल……..
तमिलनाडु में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा तथा अन्य संस्थाओं के जरिए हिंदी सीखने के लिए पंजीयन करने वालों का प्रतिशत बढ़ा है। यह केवल राजनीति प्रेरित विरोध है और इसका पुराना इतिहास रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप में भारत की सभी भाषाओं को समृद्ध करने और अपनी भाषाओ को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने की बात कही गई है। कहीं पर केवल हिंदी की बात नहीं की गई है। यह विरोध विशुद्ध राजनीतिक और संकीर्ण स्वार्थों से प्रेरित है और दीर्घावधि में देश की एकता के लिए हानिकारक..यह वैसा ही होगा,जैसे हमारे रजवाड़े आपस में लड़ते रहे और देश गुलाम हो गया। तमिलनाडु की सरकार अपने लोगों को हिंदी सीखने का अवसर न देकर उनका नुकसान ही करेगी। त्रिभाषा सूत्र भी सौहार्द पर आधारित होना चाहिए। जब हिंदी की बात होते ही आंदोलन-धरनों और देश से अलग हो जाने तक की बातें शुरू हो जाती हैं और अंग्रेजी से उन्हें कोई गुरेज नहीं है तो देश के एक बड़े हिंदीभाषी समूह को भी बुरा लगता है। हिन्दी की अनिवार्यता न कहीं नौकरियों में है और न ही आगे होने वाली है। इस सम्बन्ध में संसदीय राजभाषा समिति की पूर्व सिफारिशें भी राष्ट्रपति द्वारा स्वीकार नहीं की गई है,तो यह हो -हल्ला क्यों.. ? क्या इस देश में हिंदी का विरोध कुछ राजनेताओं के लिए सिर्फ एक वोट बैंक की राजनीति नहीं बन गया है ?
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

Leave a Reply