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विश्‍व प्रेमी व्‍यक्‍तित्व के प्रतीक कवि कबीरदास

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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संत कबीर जयंती (४ जून) विशेष…

संत कबीर दास भक्‍तिकाल के एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिन्‍होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर कर्म प्रधान कवि थे, इसका उल्‍लेख उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है। कबीर का संपूर्ण जीवन समाज कल्‍याण एवं समाज हित में उल्लेखनीय है। कबीर, हकीकत में विश्‍व प्रेमी व्‍यक्‍तित्व के कवि माने जाते हैं। माना जाता है कि कबीर का जन्‍म सन् १३९८ ई. (लगभग) में लहरतारा ताल (काशी) के समक्ष हुआ था। कबीर के जन्‍म के विषय में बहुत से रहस्‍य हैं। कुछ लोग कहते हैं कि कबीर जन्‍म से ही मुसलमान थे और बाद में उन्‍हें गुरु रामानंद से हिन्‍दू धर्म का ज्ञान प्राप्त हुआ। ऐसे ही कबीर के माता-पिता के विषय में लोगों का कहना है कि, कबीरदास जी, कमल के पुष्‍प में लपटे हुए मिले थे। कबीर का जन्‍म कृष्‍ण के समान माना जा सकता है। जिस प्रकार कृष्‍ण की जन्‍म देने वाली और पालने वाली माँ अलग थी, उसी प्रकार कबीरदास की माँ भी अलग-अलग थी।

कबीर निरक्षर थे, उन्‍हें शास्त्रों का ज्ञान अपने गुरु स्‍वामी रामानंद द्वारा प्राप्‍‍त हुआ था।
कबीरदास के गृहस्‍थ जीवन की बात करें तो, पुत्र कबीर के मतों को पसंद नहीं करता था, इसका उल्लेख कबीर की रचनाओं में मिलता है। कबीर ने अपनी रचनाओं में पुत्री ‘कमाली’ का जिक्र कहीं नहीं किया है।
कहा जाता है कि कबीरदास द्वारा काव्यों को कभी भी लिखा नहीं गया, सिर्फ बोला गया है। उनके काव्यों को बाद में उनके शिष्‍यों द्वारा लिखा गया। कबीर को बचपन से ही साधु-संगति बहुत प्रिय थी, जिसका जिक्र उनकी रचनाओं में मिलता है। कबीर की रचनाओं में मुख्‍यत: अवधी एवं साधुक्‍कड़ी भाषा का समावेश मिलता है। कबीर राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनकी साखि‍यों में गुरु का ज्ञान एवं सभी समाज एवं भक्‍ति का जिक्र देखने को मिलता है। कहा जाता है कि १५१८ के आसपास, मगहर में उन्होंने अंतिम साँस ली और एक विश्‍वप्रेमी एवं समाज को अपना सम्पूर्ण जीवन देने वाला दुनिया को अलविदा कह गया…।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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