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विश्व शांति का मूल मंत्र ‘अहिंसा’

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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आदि मानव अज्ञान में जन्मा, थी प्रति हिंसा,
ज्ञान कुछ बढ़ा तभी, अनुभूति से मिटा हिंसा
उनकी भूख तृप्ति भोजन में तब रही थी हिंसा,
भावों में चढ़ा प्रेम तो परिणाम हुई अहिंसा।

इतिहास कह रहा यहाँ लाखों कटे,
फिर मर मिटे, तब भी न थमी हिंसा
मिट्टी का रंग लाल कर, न रुक सकी थी हिंसा,
तब धर्म युद्ध चल रहा, सब कर्म अपना कर रहे, न थम रही थी हिंसा।

वो दौर महाभारत का रक्तपात और हिंसा,
कुरुक्षेत्र रक्त रंजित था, न रुक सकी ये हिंसा
स्वयम् कृष्ण बने सारथी, ईश्वर ही युद्ध महारथी,
लेकिन सभी धर्मार्थ में हिंसा थी न्याय स्वार्थी।

सदियों के बाद फिर हुई ये मार-काट हिंसा,
सम्राट तब अशोक थे, हिंसा पर हुई हिंसा
साम्राज्य के विस्तार में लाखों कटे और कट मरे ‘कलिंगा’ में बड़ी हिंसा,
हो लाल वो मिट्टी हुई, चलती रही थी हिंसा।

विक्षुब्ध स्वयं अशोक हो, अपनाई फिर अहिंसा,
भगवान राम के इस देश में सत्य की बुनियाद पर तब भी खड़ी थी हिंसा
राक्षस वो रावण लंकापति, घमंड में थी हिंसा,
उस क्रूर रावण से क्या राम करें अहिंसा ?

असहज मूल आचरण, धर्म-संस्कृति के मूल में अहिंसा,
है गौ हमारी माता, कुत्ता हैं मेरे भैरव
यह प्रेम-स्नेह की छवि का सार है अहिंसा,
यह धरा, वसुंधरा, प्रकृति स्वरूप हरा भरा, जल-नीर है अहिंसा।

बस प्रेम, स्नेह जग उठे, स्वयम ही मिटेगी हिंसा,
माँ भारती की भूमि ये, जहाँ राम, कृष्ण, बुद्ध, गाँधी का मूल मंत्र है अहिंसा
चिंतन हो शुद्ध, बुद्ध तो अंगुलीमाल में अहिंसा,
चींटी को मारना पाप हो, जीव हत्या भी अभिशाप हो ,भारत का मंत्र अहिंसा।

प्राणी में भाव-सद्भाव हो, विश्व का कल्याण हो, विचारों में हो अहिंसा,
यह विश्व धर्म चक्र का बुद्ध उपदेश है अहिंसा
स्वछंदता, स्वतंत्रता हर जीव में विनम्रता, पनपे वहाँ अहिंसा,
‘सोने की चिड़िया’ विश्व की लुटा मुगलिया हिंसा।

खुद को ही मार-काट के करते रहे थे हिंसा,
ब्रिटिश बंदूक-बारूद से भी खूब हुई थी हिंसा
बुद्ध के उपदेश का गाँधी में असर अहिंसा,
हिंसा के बाद शांति खोज, हम देख रहे यह रोज-रोज,
अहम्-वहम घमंड में विनाशकारी हिंसा।

विध्वंस-दंश विश्व में ताकत बड़ी अहिंसा,
विस्तार की बुनियाद पर यूँ जला रही है हिंसा
खुद ‘जियो और जीने दो’ हृदय बसे अहिंसा,
जीव-जंतु हत्या पाप है, यह सोच है अहिंसा।

बुद्ध के इस विश्व में न युद्ध हो, न हिंसा,
समावेश सत्य, शांति हो, उपदेश बुद्ध अहिंसा।
हर काल खण्ड, युग में परम धर्म है अहिंसा,
‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से मिट पाएगी ये हिंसा॥

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