जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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कभी संतूर जैसी धुन निकलती क्या नगाड़ों में।
नहीं बादाम-सी ताकत कभी मिलती सिंघाड़ों में।
बिना हथियार वीरों ने दिखाये शौर्य के करतब,
चबा डाले चवालिस चीन के सैनिक जवाड़ों में।
नदी आवाज खो बैठी सुरीली जल तरंगों की,
भयानक नाद था उस वक्त शेरों की दहाड़ों में।
छुपे थे युद्ध के एलान चीनी चालबाजी में,
हिमाकत कर गया दुश्मन छुपा बैठा पहाड़ों में।
खिलाड़ी बंद कमरों में कभी पैदा नहीं होते,
कबड्डी और कुश्ती फूलते-फलते अखाड़ों में।
खदानों की खुदाई में सदा हीरे निकलते हैं,
कभी मिलते नहीं हीरे पड़े मलबे कबाड़ों में।
खुली खिड़की से अक्सर राज सड़कों पर टहलते हैं,
मगर आरोप के बादल सदा दिखते किवाड़ों में।
पड़ी चट्टान पर ‘हलधर’ पनपते पेड़ पौधे जो,
बताओ कौन बोता बीज पर्वत की दराड़ों में॥