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वीर सिपाही की ललकार

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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भारत में पैदा होकर के मैं इसको नहीं लजाऊँगा,
सौगन्ध मुझे है मिट्टी की,मैं खेल मौत से जाऊँगा।

दे बलिदान देश भक्तों नें इसकी आन बचाई है,
राणा प्रताप से वीरों ने रोटियाँ घास की खायी है।
उन बलिदानी वीरों में मैं अपना नाम लिखाऊँगा,
सौगन्ध मुझे है…

दुश्मन चाहे कोई आए,मैं उसको मजा चखा दूँगा,
कसम भारती माँ की है,मिट्टी में उसे मिला दूँगा।
डरता हूँ ना कर पाया तो मैं कैसे मुँह दिखलाऊँगा,
सौगन्ध मुझे है…

डरता नहीं किसी से भी भारत माता का जाया हूँ,
ले माँ का आशीष यहाँ सीमा पर लड़ने आया हूँ।
दुश्मन की छाती पर मैं अपना परचम लहराऊँगा,
सौगन्ध मुझे है…

वीरों की धरती भारत ने ऐसा सपूत भी जाया था,
जिसने दाँत गिने शेरों के नाम भरत कहलाया था।
ऐसे ही वीरों में मैं भी अपना नाम लिखाऊँगा,
सौगन्ध मुझे है…

भारत की अखण्डता को मैं मिटने कभी नहीं दूँगा,
जो इसे तोड़ने आएगा,मैं प्राण वहीं पर ले लूँगा।
चाहे रण में लड़ते-लड़ते खुद मैं शहीद हो जाऊँगा,
सौगन्ध मुझे है…

हे माँ शारद निज हाथों को शीश पे तुम मेरे रख दो,
कर के कृपा लेखनी में तुम शोले देशभक्ति भर दो।
शब्दों से कविताओं के मैं ऐसी आग लगाऊँगा,
सौगन्ध मुझे है मिट्टी की,मैं खेल मौत से जाऊँगा॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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