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वृक्ष कल्याणकारी, परिवर्तन स्वीकारें

राधा गोयल
नई दिल्ली
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पावन वट सावित्री व्रत जैसे व्रतों से सभी बहनें भावनात्मक रूप से अपने को सहज ही जोड़ लेती हैं और प्रातःकाल से ही इनकी पूजन विधियों में संलग्न हो जाती हैं। यह तो अच्छी बात है, पर समस्या तब आती है जब आज की पीढ़ी ऐसी बातों में विश्वास ही नहीं करती या फिर परिवार के दबाव में बाह्य रूप में परंपराओं से जुड़ी रहती है, लेकिन मन से नहीं।
वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता है, इसमें सत्यवान सावित्री कथा जोड़ दी गई है। ज्योतिषियों के कथनानुसार सत्यवान की उम्र बहुत कम थी, इसके बावजूद सावित्री ने उससे विवाह किया। यह कितना सत्य है, यह तो भगवान ही जाने, पर आजकल के बच्चे इस पर विश्वास भी नहीं करेंगे। बहुत मंथन करने पर सत्य यही लगता है कि, सत्यवान जीविकोपार्जन के लिए जंगल से लकड़ियाँ काट कर लाता था। धन का अभाव था, मुश्किल से भोजन की आवश्यकता ही पूरी हो पाती थी, जिसके कारण देह भी जर्जर हो गई थी। हम केवल यही कहानी सुना कर बच्चों को कहेंगे कि, यमराज जब सत्यवान को लेने आया तो सावित्री उसके पीछे चल पड़ी। यमराज के बार-बार कहने पर भी नहीं लौटी। तभी लौटी, जब उन्होंने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। पति ही नहीं तो, पुत्र कैसे होगा ? अपने ही दिए वरदान में यमराज फंस गए और सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। इतना भर बताने से आजकल के बच्चे इस बात पर विश्वास नहीं करेंगे। हाँ, इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि सावित्री के राज्यच्युत श्वसुर को अपना खोया हुआ राज्य मिल गया। ऐसा तो एक नहीं, अनेक राजाओं के साथ हुआ।
आज की पीढ़ी नई जागरूक पीढ़ी है। वो सभी कुछ स्वीकार्य कर सकती है, यदि बात तर्क संगत हो तो। और जब उन्हें कोई बात समझ आ जाती है, तब वो और व्यवस्थित तरीके से परंपराओं का निर्वहन करती है।आज जब हम उनके सामने भारत के ऐसे गौरवमयी इतिहास को सामने लाते हैं तो, उन्हें भी गर्व होता है पर तब, जब हम वैज्ञानिक तर्क के साथ समझाते हैं कि सावित्री का पति केवल उसके व्रत करने से जीवित नहीं हुआ, बल्कि वो उसकी बुद्धिमत्ता का परिणाम था कि उसने धूप, भूख और थकान से पीड़ित पति को वट-वृक्ष की छाया में लिटाया। वह वट-वृक्ष, जिसमें पूरे समय ऑक्सीजन का प्रवाह होता रहता है। जल के छींटे पति के मुख पर डाले और पिलाया भी तो उसके मूर्छित तन में एक चेतना का संचार हुआ।
इस प्रकार इस कथा के मूल में जो तथ्य सामने आया, वो ये कि पति-पत्नी एक दूसरे की व्यथा को समझें। एक-दूसरे का साथ दें और यदि एक-दूसरे के लिए किसी हद तक भूख-प्यास का त्याग करना पड़े तो सहन करें।
वृक्ष हमारे लिए कितने कल्याणकारी हैं, यह बात भी इन व्रत कथाओं में छुपी हुई है। आज की पीढ़ी पुरानी परंपराओं में छुपे गहन भावों को समझे और उनमें समयानुसार अपेक्षित परिवर्तन भी करे, साथ ही पुरानी पीढ़ी को भी चाहिए कि केवल लकीर के फकीर न बने रहें, बल्कि समय और स्थिति के अनुसार परिवर्तन को स्वीकारें, क्योंकि जिन्होंने इन रिवाजों और रस्मों को बनाया था, वो अज्ञानी नही थे। हाँ, उन्होंने तत्कालीन समय के आधार पर मान्यताओं को समझाने का प्रयास किया था और उन्हें धर्म के साथ जोड़ दिया था। अब हमें इन अमानतों को अपने बच्चों को सौंपना है। अपने बच्चों को यह भी समझाना है कि, पेड़ों का जीवन में कितना महत्व है। चाहे वह फलदार पेड़ हों अथवा औषधीय। यह भी समझाना है कि अपने जन्मदिन और वैवाहिक वर्षगांठ पर एक पेड़ अवश्य लगाएं। यदि हर व्यक्ति ऐसा करने लगेगा तो, केवल १ ही व्यक्ति अपनी जिंदगी में कितने ही पेड़ लगा देगा। यदि सभी ऐसा करने लगें तो हर जगह हरियाली रहेगी। ऑक्सीजन की कमी नहीं रहेगी। फल-फूल की कमी नहीं रहेगी। पर्यावरण प्रदूषण कम होगा, क्योंकि नीम, पीपल, वट-वृक्ष जैसे पेड़ कार्बन को सोखते हैं। नीम और वट-वृक्ष तो २४ घंटे प्राणवायु (ऑक्सीजन) देते हैं। पीपल का पेड़ भी कार्बन को सोखता है। रात्रि में १२ से २ बजे के बीच पीपल कार्बन उत्सर्जन करता है। पहले के लोगों ने इसे भूत-प्रेत से जोड़ दिया था कि, पीपल के पेड़ पर भूत रहते हैं। रात को वहाँ नहीं सोना चाहिए। भूत मार देते हैं। वह इसका वैज्ञानिक मतलब नहीं समझा पाए थे। जब पेड़ २ घंटे पूरी शक्ति से कार्बन उत्सर्जित करेगा तो, उसके नीचे सोए व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीजन बिल्कुल भी नहीं जाएगी, तो क्या कोई जीवित रह सकता है ?

आज के वट सावित्री व्रत में बहुत गहरी बात छिपी है कि, वट-वृक्ष कभी नहीं मरता। वह अक्षय वट है। उसका तना जमीन में बहुत गहराई तक जाता है। २४ घंटे ऑक्सीजन देता है। जिसका तना बहुत गहराई में हो, वह पेड़ भू-स्खलन से भी बचाव करता है। ऐसे पेड़ों का निरन्तर काटा जाना भी आज जगह- जगह प्राकृतिक आपदाओं का बहुत बड़ा कारण है। आज हम सब यह शपथ लें कि अपने बच्चों के जन्मदिन व वैवाहिक वर्षगांठ पर एक पौधा अवश्य लगाएंगे।

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