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वे भाषाएँ ही टिकेंगी, जो विकसित हो जाएंगी

प्रो. महावीर सरन जैन
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सूचना प्रौद्यौगिकी के संदर्भ में भारतीय भाषाओं की प्रगति एवं विकास के लिए एक बात की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। व्यापार, तकनीकी और चिकित्सा आदि क्षेत्रों की अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने माल की बिक्री के लिए सम्बंधित सॉफ्टवेयर ग्रीक, अरबी, चीनी सहित संसार की लगभग ३० से अधिक भाषाओं में बनाती हैं, मगर वे हिन्दी, बांग्ला, तेलुगु, मराठी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं का पैक नहीं बनाती। कुछ प्रबंधकों ने इसका कारण यह बताया कि वे यह अनुभव करते हैं कि, हमारी कम्पनी को हिन्दी, बांग्ला, तेलुगु, मराठी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं के लिए भाषा पैक की जरूरत नहीं है। हमारे प्रतिनिधि भारतीय ग्राहकों से अंग्रेजी में आराम से बात कर लेते हैं, अथवा हमारे भारतीय ग्राहक अंग्रेजी में ही बात करना पसंद करते हैं। उनकी यह बात सुनकर यह बोध हुआ कि, अंग्रेजी के कारण भारतीय भाषाओं में वे भाषा पैक नहीं बन पा रहे हैं, जो सहज रूप से बन जाते। हमने अंग्रेजी को इतना ओढ़ लिया है, जिसके कारण न केवल हिन्दी का, अपितु समस्त भारतीय भाषाओं का अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा है। जो कम्पनी ग्रीक एवं अरबी में सॉफ्टवेयर बना रही हैं वे हिन्दी, बांग्ला, तेलुगु, मराठी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं में सॉफ्टवेयर इस कारण नहीं बनातीं, क्योंकि उनके प्रबंधकों को पता है कि उनके भारतीय ग्राहक अंग्रेजी मोह से ग्रसित हैं। इस कारण हिन्दी, मराठी, तमिल आदि जैसी भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी पिछड़ रही है। इस मानसिकता में जिस गति से बदलाव आएगा उसी गति से भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी का भी विकास होगा। हिन्दी, बांग्ला, मराठी जैसी भारतीय भाषाओं की सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के लिए कम से कम विदेशी कम्पनियों से भारतीय भाषाओं में व्यवहार करने का विकल्प चुने। उनको अपने अंग्रेजी के प्रति मोह का तथा अपने अंग्रेजी के ज्ञान का बोध न कराए। जो प्रतिष्ठान आपसे भाषा का विकल्प चुनने का अवसर प्रदान करते हैं, कम से कम उसमें अपनी भारतीय भाषा का विकल्प चुनें। आप अंग्रेजी में दक्षता प्राप्त करें, यह स्वागत योग्य है। आप अंग्रेजी सीखकर, ज्ञानवान बनें, यह भी ‘वेल्कम’ है, मगर जीवन में अंग्रेजी को ओढ़ना-बिछाना बंद कर दें। ऐसा करने से आपकी भाषाएँ विकास की दौड़ में पिछड़ रही हैं। भारत में भारतीय भाषाओं को सम्मान नहीं मिलेगा तो फिर कहाँ मिलेगा ? इस पर विचार कीजिए, चिंतन कीजिए, मनन कीजिए।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)