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वैसाखी पावन पर्व

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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खिली कृषक मुस्कान अधर,
जट्टा वैसाखी आई रे
फ़सलों से भर मातु भारती,
सुख वैभव मान बढ़ाई रे।

आज चैत्र वैशाखी शुभदा,
विक्रम संवत हर्षाया रे
वैसाखी पावन दिवस पर्व,
हिन्दू संस्कृति यश गाया रे।

नवल फ़सल हरितिम धरा पूर्ण,
खुशियाँ परिवेश बिछायी रे
दीन धनी का सुखमय उत्सव,
समरसता संदेशा लाई रे।

निशि वासर मिहनतकशी कृषक,
प्रतिमानक यह त्यौहार रे
सतुआइन का पर्व खुशी यह,
जुड़शीतल पुण्य उपहार रे।

कर्मवीर प्रतिमान सबलतम,
शौर्य शक्ति शान सम्मान रे
वैसाखी नवरात्र अनन्तर,
रिद्धि-सिद्धि फलक वरदान रे।

विजय वीर पुरुषार्थ देशहित,
आलस श्रम शत्रु विनाशी रे
सब जन मन सुख सम्पद फलदा,
चिर हिन्दू पर्व शुभाशी रे।

चैत्र अमावस प्रतिपदा शुभा,
वैशाखी हिय सुखदायी रे
नव प्रभात सुखधाम अरुणिमा,
अभिलाषा नव फलदायी रे।

गुडी पर्वा विहू असम में,
पुण्य त्यौहार महान रे
नाच गान नित विहू भांगड़ा,
चैता मधुरस मिथिला गान रे।

चटनी तिकुला आम चटक रस,
नव कटहल सब्जी स्वादु रे
वैसाखी जामुन फल शोभित,
सूर्य क्रुद्ध बरसती आग रे।

नवदुर्गा नवरूप पुण्यदा
माँ महाशक्ति अवतार रे
प्रेम भक्ति पूजन वैदिक विधि,
हो कोराना संकट पार रे।

मिटे सकल आतंक रोग जग,
मनसि लोभ शोक तम पाप रे
शान्ति प्रेम सौहार्द्र मुदित सब,
खुशी वैशाखी मन आप रे।

जले चहुँ दीपावली दीप,
नित होली सम उल्लास रे
हो किसान वैसाखी प्रमुदित,
ईदी मुबारक मिठास रे।

सुख वैभव हो मुस्कान जगत,
समता धन मन देश विशाल रे
बच्चे पढ़ें घर वतन बेटियाँ,
सबल संदेशा खुशहाल रे।

कवि ‘निकुंज’ वैशाखी पावन,
आराधन भक्ति प्रीति सुहास रे
कोरोनासुर बैशाखी नाशक,
रवि किरण तीक्ष्ण खलनाश रे।

वैशाखी बिहू महके सुगन्ध,
अन्नपूर्णा मुदित किसान रे।
शौर्यवीर सीमा चहुँ अविचल,
रक्षक मान सुयश सम्मान रे॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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