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शरदाकुल कुहरा प्रलय

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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शरदाकुल कुहरा प्रलय, अगहन पूस बसात।
सिहराती तनु अस्थियाँ, कौन सुने ज़ज्बात॥

विषम शीत कुहरा गहन, कहाँ वस्त्र तनु दीन।
आजादी हीरक बरस, दीन गेह श्री हीन॥

शीताकुल ठिठुरन विषम, तुषार शीत अपार।
घन कुहरा में वसन बिन, दीन हीन लाचार॥

ठिठुर रही जीवन दशा, धनी- दीन में भेद।
कहाँ मूल समता वतन, अधिकारी उच्छेद॥

कोटि-कोटि लावारिसें, बनी सड़क छत गेह।
मौत बनी ठंडक खड़ी, कम्पित मानव देह॥

सर्दी बरसाती कहर, है भीषण हिमपात।
कुहरा तम फैला वतन, आतंकी आघात॥

स्वेटर गद्दा रजाई, कंबल कोट जहान।
वैभवशाली हो सहज, कहाँ दीन लभमान॥

आज़ादी अमृत बरस, लोकतंत्र अभिमान।
अस्सी प्रतिशत दीनता, सार्वभौम पहचान॥

मुफ़्तखोर मानव चरित, सरकारी पा भीख।
ठिठुरित तन-मन बिन वसन, पड़े सुनाई चीख॥

महाकाल बन कोहरा, बर्फपात चहुँ ओर।
सैलानी मदमस्त हिम, तुषार शीत घनघोर॥

ठंडी अगहन पूस की, बड़ा भयानक काल।
जले अंगीठी लकड़ियाँ, राहत दे बदहाल॥

घी खिचड़ी पापड़ दही, शीत काल प्रिय भोज।
गर्म चाय की चुस्कियाँ, मूंगफली संयोग॥

पर्व मकर संक्रांति का, पोंगल कृषि त्यौहार।
उत्सव नृत्य गीत बिहू, नवल वर्ष उपहार॥

शीतकाल दु:खदायिनी, आलस नशा बयार।
धनवानों की मस्तियाँ, दीन ठंड लाचार॥

कहाँ श्रमिक राहत शरद, दीन हीन मजदूर।
शमन उदर जठराग्नि रत, जीने को मजबूर॥

सिहराती सर्दी कहर, कोहरा धुंध अपार।
तुषार हार धवल स्मिता, चारु धरा श्रंगार॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥