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शासक वाली मानसिकता हटाने के लिए ‘इंडिया’ शब्द को हटाना भी आवश्यक

संगोष्ठी….

मुंबई (महाराष्ट्र)।

भारत दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक हिस्से का नाम इंडिया है और दूसरे का नाम है भारत। इंडिया में वे लोग रहते हैं जो संपन्न और स्वयं को भद्र कहते हैं, जबकि भारत में शेष वे सौ करोड़ लोग रहते हैं जो गुलाम बने हुए हैं। इंडिया की इस वर्ग की शासक वाली मानसिकता को हटाने के लिए इंडिया शब्द को हटाना भी आवश्यक है।
यह बात वरिष्ठ पत्रकार एवं भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष डॉ. वेद प्रताप वैदिक ने ‘एक राष्ट्र एक भाषा:भारत अपनाएं,इंडिया हटाएँ’ विषय पर आयोजित वैश्विक ई-संगोष्ठी में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए कही। इस संगोष्ठी का आयोजन भारत,भारतीयता और भारत के सशक्तिकरण के लिए कार्यरत ‘जनता की आवाज फ़ाउन्डेशन ‘ और देश-विदेश में हिंदी व भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यरत संस्था ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। फाउंडेशन’ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कानबिहारी अग्रवाल द्वारा संस्था के उद्देश्य और ‘भारत अपनाएं, इंडिया हटाएँ’ अभियान की जानकारी प्रस्तुत की गई। सम्मेलन के निदेशक तथा फाउंडेशन के राष्ट्रीय मंत्री डॉ. मोतीलाल गुप्ता ने विभिन्न युगों एवं कालखंडों में हमारे ऐतिहासिक,धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों में वर्णित हमारे देश का नाम भारत होने संबंधी अनेक दृष्टांत प्रस्तुत किए।
संगोष्ठी में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. निरंजन कुमार ने कहा कि औपनिवेशिक दबाव के कारण स्वतंत्रता के समय भारत के नाम में इंडिया शब्द को जोड़ दिया गया और इसी प्रकार हिंदी को राजभाषा बनाए जाने के बावजूद उसमें अंग्रेजी को जोड़ दिया गया। अब इसे जन-अभियान और जन-दबाव के माध्यम से बदले जाने की आवश्यकता है।
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर से संगोष्ठी में जुड़े विश्वविद्यालय के शोधकर्ता,अभियंता एवं प्रबंधन के विभागाध्यक्ष डॉ. सुभाष शर्मा ने इंडिया शब्द को हटाने और केवल भारत नाम को ही रखे जाने का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि,किसी भी देश का नाम उसकी पहचान होती है और वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। दासता की मानसिकता के चलते भारत के नाम के साथ इंडिया को जोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण था। विभिन्न देशों के नाम बदले जाते रहे हैं। इसलिए हमें अपने देश के नाम से भी इंडिया शब्द को शीघ्र हटाना होगा। विभिन्न आध्यात्मिक-धार्मिक ग्रंथों के उदाहरण देते हुए सुप्रसिद्ध हिंदी काव्य रूपांतरकार डॉ. मृदुल कीर्ति(अमेरिका) ने कहा कि यदि भारत के लोगों में भारतीयता की तड़प पैदा हो जाए तो कल ही इंडिया नाम को हटाया जा सकता है।
मॉरीशस से वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार राज हिरामन ने कहा कि,आपको नाम के साथ-साथ बहुत कुछ बदलना पड़ेगा। भारत के लोग भारत बनाने के बजाय इंडिया बनाने में लगे हैं। यह तो भारत वालों को सोचना है कि वे अपने को पहचानें और इंडिया शब्द को हटाएँ। ‘भारतीय भाषा मंच’ के अध्यक्ष प्रो. वृषभ जैन ने कहा कि हमारे देश का नाम हजारों वर्ष से भारत है। अब कुछ वर्ष पूर्व इसमें इंडिया जोड़ने का मतलब यह है कि हम हजारों वर्ष के ज्ञान-विज्ञान,धर्म- आध्यात्म और संस्कृति को नकार रहे हैं। इसलिए हमें भारत नाम के साथ ही आगे बढ़ना होगा। नीदरलैंड से प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने भी अपनी भावना व्यक्त की।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे फाउंडेशन के अध्यक्ष सुंदर बोथरा ने कहा कि हम भारत के वास्तविक नाम ‘भारत’ को स्थापित करने और इंडिया नाम को हटाने के लिए देशभर में मोतियों की माला की तरह सभी को परस्पर जोड़ते हुए अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। हमें भारत नाम का हर स्तर पर अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।
कार्यक्रम में भार्गव मित्रा(गृह मंत्रालय)सहित विपिन गुप्ता,शंकर असकंदानी,इन्द्र चन्द बैद,रितेश पोरवाल,राजेश महेश्वरी,डॉ.राजीव कुमार अग्रवाल आदि गणमान्य उपस्थित रहे। संचालन डॉ. गुप्ता ‘आदित्य’ ने किया।धन्यवाद ज्ञापन फाउंडेशन के राष्ट्रीय महासचिव कृष्ण कुमार नरेडा ने प्रस्तुत किया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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