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जबसे शिक्षक हम…

बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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जब से शिक्षक हम,
सरकारी हो गए
बिना मिर्च-नमक की,
तरकारी हो गए।

एक पढ़ाने का काम था,
अच्छा-खासा
अब तो चपरासी से लेकर,
पटवारी हो गए।

ज्ञान भी देना है,
ज्ञान बटोरना भी है
कक्षा में घटें बच्चे,
उनको जोड़ना भी है
माता-पिता की छोड़ो यारों,
बच्चे शिक्षक की पूरी जिम्मेदारी हो गए।

खुद के बच्चे जाने कहाँ पड़े,
भविष्य उनका अधर में लटके
न प्रमोशन की आशा,
न ट्रांसफर का पता
तनाव के अब आहारी हो गए।

किताबें ढोते,
किताबें बांटते
स्कूल के बाद भी,
न चैन से समय काटते।
जैसे घोड़े की ये,
सवारी हो गए॥

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