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शीत ऋतु

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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‘कलयुग’ खण्डकाव्य से…

पहुँचाने द्वार शीत आयी, तन मन भिगाती बरखा,
पर सूखा-सूखा समय रहा, चला काल का पुनःचरखा।

शरद दौड़ता छूने हमको हम सब तो भय से भागे,
सोया हिम की चादर ताने, वह ऊँचा पर्वत आगे।

हाड़ कपांता वह हड़काता, सरसराता ठंड आया,
धीमा-धीमा रवि घाम हुआ, शिशिर संसार सिकुड़ाया।

लगा रहता ऋतु आना-जाना करते रहते प्रतीक्षा,
जाते ही अच्छी लगती वह, रहने तक करे समीक्षा।

विस्मयकारी काल चक्र भी, कभी ताप लगता प्यारा,
कभी ताप से जल उठता तन, जल बनता कभी सहारा।

शीत शिशिर की धवल चाँदनी, सघन तुषार हुआ मैला,
रजनी ने मोती बिखराए, ओस रूप में वह फैला।

व्याख्या कैसे करती नयना, शीत निशिथ सुचि सुंदरता,
भाख्या रसना करता कैसे उसको कभी कहाँ दिखता।

स्वच्छ नीलाम्बर भेष विराट, मेघ की गयी पहुँनाई,
थका-थका ऊँघा लगता, कर चौमासे भर अगुवाई।

ऋतुओं का अन्वेषण करते, आगे बिना थके बढ़ते,
पीछे छोड़ा शरद शिशिर को, पीत पवन पर आ थमते।

लदे हुए फूलों से डाली झूम- झूम करती मंथन,
अंकनी सुध-बुध खो छवि रचती, कर मादकता का अंकन॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।