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शुभ `चिंतन` सब कीजिये

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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चिंतन-
शुभ चिंतन सब कीजिये,मिले सभी फल चार।
सादा स्वच्छ विचार से,बनता है व्यवहारll

क्षमा-
क्षमादान सबसे बड़ा,होता मेरे यार।
दीन-हीन सब पर करो,मिले सभी को प्यारll

प्रज्ञा-
प्रज्ञा आप जगाइए,बनकर बुद्धिमान।
पावोगे संसार में,सबसे फिर सम्मानll

प्रचण्ड-
ठंडी बड़ी प्रचण्ड है,कैसे बचे किसान।
खेतों में मेहनत करे,धरे ध्यान भगवानll

दासता-
अंग्रेजों की दासता,झेले कितना यार।
आज सुखी सब जन यहाँ,देखो ये संसारll

संताप-
मत करना संताप तू,एक भरोसो राम।
नाम लगन से लीजिये,देख बनेंगे कामll

विलोकित-
करो विलोकित क्रोध को,रहे प्रेम आचार।
सबसे हिल-मिल चाहिए,नदी-नाव व्यवहारll

बुलन्दी-
आज बुलन्दी छू चलो,कठिन परिश्रम काज।
इनमें सब छूपा हुआ,यार सफलता राजll

प्रत्याशा-
प्रत्याशा की आस में,करते हैं सब काम।
सकल मनोरथ पूर्ण फिर,होते हैं अविरामll

अटल-
रखो अटल विश्वास को,मन में धीरज धार।
करो काम फिर नेक तू,होगा बेड़ा पारll

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