विमोचन..
दिल्ली।
डॉ. निश्छल ने साहित्यिक जगत में पुस्तकों के लेखन में जिस प्रकार शतक को छुआ है, वह अपने-आपमें बहुत ही अनुकरणीय, अद्भुत और अनुपम है। श्री सिंघल की कविताओं में भारतीय मनीषा अपने उच्चतम स्वर में बोलती है, जिससे साहित्यिक लोगों को साहित्य और राष्ट्र की सेवा करने की अनुपम प्रेरणा मिलती है। १७ पुस्तकों का एकसाथ विमोचन उनकी अद्भुत प्रतिभा को प्रकट करता है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. राकेश कुमार आर्य ने यह बात कही। यह अवसर रहा गुरुग्राम में आयोजित विशेष कार्यक्रम में साहित्य जगत के मूर्धन्य विद्वान डॉ. विनय कुमार सिंघल ‘निश्छल’ की १७ पुस्तकों के एकसाथ विमोचन (राम का अंतर्द्वंद, अंतर्जगत की काव्य यात्रा, काव्य परायण, मेरी इक्यावन कविताएं आदि) का। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार राकेश कुमार छोकर द्वारा की गई। उन्होंने कहा कि, रचना जब विधाता की स्वयं की भाषा में बोलती है, तो वह संसार का मार्गदर्शन करती है। ऊर्जा प्रदान करने वाली भाषा और जीवन व जगत के रहस्यों को सुलझाने में समर्थ काव्य रचना स्वयं विधाता की कृति होती है। यह कहना पूर्णतया उचित ही होगा कि, श्री सिंघल जब अपनी प्रतिभा को अपनी पुस्तकों के पृष्ठों पर बिखेरते हैं तो उनके भीतर विधाता का यही स्वरूप प्रकट होता है।
इस अवसर पर अजय आर्य की विशेष उपस्थिति रहीं।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. वीणा शंकर शर्मा, श्रीमती अंजू कालरा दासन और अश्विनी दासन ने भी अपनी भावना व्यक्त की। चित्रलेखा जी, निशांत सिंघल एवं परिवार ने अतिथियों का स्वागत किया।
श्री सिंघल ने सभी उपस्थित आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। ज्ञात हो कि श्री सिंघल ने अब तक ९५ पुस्तकें लिखी हैं।